लाडलीजु वृक्ष की इस अधिक नीची से डाल से झुक झुक,झाँक झाँककर सामने जरा दूरी पर खडै लालजु को देख रही है।जरा सा देख फिर छुप जाती है।सामने लालजु अपनी चिर परिचित त्रीबंकी अदा से खडे है।
अबकी बार जो लाडली जु छुपके पुनः लालजु को देखने लगी तो लालजु दीखे ही नही।एक पल मे लाडली जु ने सामने सब ओर दृष्टि फिरा कर देख लिया।अब लालजु के न मिलने पर लाडली जु अकुलाकर ज्यौ ही पीछे मुडी दो सशक्त भुजाओ ने बाँध लिया इनको,प्रियतम के यू अचानक जाकर आने से लाडली जु भी बिना लज्जा संकोच किये स्वयं को बिसार दी लालजु के अंक मे....
लली निरखै छिप मौहन।
पुनि निरखै पुनि छुपिहै,ठाडौ बंकी अदा सौहन।
अबकै छिपी नाय दीख्यौ,लली अधीर भई मुडिहै।
पाछै खड्यौ भरी भुजही,प्यारी लाल अंक ढुरिहै।
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