मोरकुटी युगल लीलारस-18
जय जय श्यामाश्याम !!
श्यामा श्यामसुंदर जु यमुना नीर में तैर रहे हंस व उसकी जलछाया में हंसिनी को स्वरूप को देख चकित पर अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।सखियों को यह युगल जोड़ा श्यामा श्यामसुंदर जु ही प्रतीत होते हैं।इन्हें देख सखियों के हाथों से वाद्य छूट चुके हैं और संगीत धमनियों को विश्रामित कर सखियाँ प्रेम विह्वल हो उठीं हैं।श्री वृंदा देवी जु के आगमन से वृंदावन धराधाम ने एक नई रस क्रीड़ा का आगाज कर दिया है जिससे श्यामा श्यामसुंदर जु में आई रस जड़ता में नव अनुराग का संचार हो उठे।
सखियों के मधुर सुंदर अति प्रिय संगीत प्रदर्शन के उपरांत अब स्वयं प्रकृति ने अपने अप्राकृत जीव विहंगमों को इस सेवा में अपना योगदान देने के लिए तैयार किया है।श्यामा श्यामसुंदर जु की अद्भुत नृत्य शैली से वृंदावन की धरा पर रंग बिरंगे सुंदर कमल व अन्यान्य सैंकड़ों पुष्प पूर्णतः खिल ही चुके हैं और श्रृंगारित धरा पूरी चमक दमक से झूमती हुई धरातल से कंपायमान मंद गति से नृत्य कर रही है।गहन नाद छिड़ा है धराधाम पर जो थम ही नहीं रहा और नित्य पल नव नव लीलारस क्रीड़ाओं का स्वतः ही प्रादुर्भाव हो रहा है।
सुसज्जित धरा पर पक्षियों ने अपने मधुर कलरव से संगीत छेड़ दिया है।जैसे सखियों ने विभिन्न वाद्य यंत्रों का सहारा लिया था वैसे ही निकुंज के विभिन्न पक्षी कोकिल मयूर विहग खग पपीहा कपोत रंग बिरंगी नन्ही चिड़ियाँ युगल रूप ही उड़ कर पेड़ों की शाखाओं और मोरकुटी की पावन धरा पर आ विराजीं हैं।सबके हृदय में प्रेम अंकुर खिल कर भावरूप प्रस्फूरित हो उठे हैं और संगीत की गहन धमनियों के रूप में रस उछाल तरंगों सा बहने लगा है।
इधर श्यामा श्यामसुंदर जु नृत्य क्रीड़ा से विश्रामित प्रकृति के सुघड़ परिवर्तन से नेत्रसुख पा रहे हैं और पक्षियों के मधुर संगीत को हृदय नाद बना रहे हैं और वहीं वह हंस जोड़ा धीरे धीरे कुछ गा उठता है।उनके गुनगुनाने की मद्धम प्रतिध्वनि जैसे ही श्यामा श्यामसुंदर जु के कानों में पड़ती है मधुर पवन के वेग से उनके कुंडल व घुंघराले केश नृत्य कर उठते हैं और नयन बिंदु निमलित से होकर निकुंज में तत्सुख हेतु डूबे तमाम वातावरण को देख उल्लास उन्माद से भर जाते हैं।
युगल हंस हंसिनी के गुनगुनाने की आवाज़ सुन श्यामा श्यामसुंदर जु एक पल के लिए खिंच से जाते हैं और श्वास रोक उनकी गान को समझने का प्रयास करते हैं।श्यामा श्यामसुंदर जु के चारों ओर एक मौन छा गया है और केवल हंस हंसिनी की प्रेम वार्ता उनके कानों में पड़े ऐसी शांति हो चुकी है निकुंज में।
हंस अपनी प्रिया हंसिनी से छायारूप से आलिंगित ही है पर फिर भी प्रेम रस से छलका वह हंसिनी को पुकार रहा है।प्रियतम हंस की वाणी में भरा प्रेम नाद और करूणसंदेस प्रिया हंसिनी सुन झट से जलछाया से निकल हंस से सट कर खड़ी हो जाती है।हंस हंसिनी के प्रेम संगम से अद्भुत सुंदर रस महक निर्झर होती है और पवन संग आ समाती है प्रियालाल जु की श्वासों में जैसे स्वीकृति हेतु यह युगल उस विशुद्ध जगत विमोहन प्रेमी युगल से अनुमती चाह रहा हो कुछ प्रेम भरा मधुर गीत गाने के लिए।महक रूप बन हंस हंसिनी श्यामा श्यामसुंदर जु के चरणों पुष्प बन में समर्पित हो जाते हैं और फिर आरम्भ होता है युगल भावों का अत्यधिक सुंदर मनमोहक प्रेमालाप।
बलिहार !!रसिक हृदय युगल रूप संगीत की गहन अनुभूतियों में थिरकता अब गा उठा है।प्रेम गीत में युगल प्रेम भावों का अनूठा आदान प्रदान जॅ अभी तक तो श्यामा श्यामसुंदर जु के नृत्य क्रीड़ा से उजागर था और सखियों के संगीत से सुसज्जित।उसी की बलवती कृपा से भर चुका है प्रकृति के कण कण से पक्षियों में।
क्रमशः
जय जय युगल !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन !!
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