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रंग रस दुई अलस भरै , आँचल जु

प्रभात का समय।युगल सरकार शैय्या पर उठ बैठे है।सखियो ने लाल लाडली को एक ही शॉल औढा रखा है।दोनो परस्पर सिमटे हुए से,गहन से गहन आलिंगित हुए बैठे है।
युगल चरण कमल परस्पर एक दूसरे के चरण पर रखे हुए है।नयनो से नयन मिले हुए है।
यू ही नयनो से रूप सुधा का पान करते हुए,एक ही शॉल मे आलिंगनबद्ध हुए,डगमगी चाल चलते हुए युगल उपवन मे आ पहुचे है।
प्रत्येक पुष्प को बडी प्रीती भरी दृष्टि से निहाल करते हुए श्री प्रियाजी कैनयन इस गुलाबी गुलाब पर ठहर गए है।युगल दर्शनो से यह कुछ अधिक ही खिला सा है,उस पर एक बडा काला सा भ्रमर गुनगुन करता हुआ बार बार इस पर बैठ व उड रहा है।
लालजु के नयन तो श्री प्रियाजु की ओर ही लगे है।
किंतु भ्रमर व पुष्प की क्रीडा से लाडलीजु कुछ स्मरण कर किंचित टेढे से नयन कर लालजु की ओर देखती है,इससे लालजु के नयन भी इस पुष्प की ओर आकृष्ट हो गये।
कितने ही समय युगल चित्रलिखित से इस प्रेम क्रीडा को निहारते रहे,मानो स्वयं को ही इस क्रीडामय पुष्प व भ्रमर मान चुके,जीने लगे।
लालजु यह देख पूर्व निशा के रंग रस मे डूब गये,उस रस से ये जड से खडे है।आज की भाव दशा कुछ विचित्र हुई,लालजु को यू देख लाडलीजु का इन पर इतना नेह उमड पडा की सब लज्जा को त्याग,उचककर लाडलीजु ने लालजु को आलिंगनबद्ध कर लिया,और लालजु ने भी रस जडता को त्याग ललीजु को प्रेम रस से सराबोर कर दिया।यही खडे खडे दो प्रेम सिंधु परस्पर गाढ मिलित होकर एक होने लगे......

रंग रस दुई अलस भरै,बंधै एकौ रस दुशालै।
पद पकंज धरै पद ऊपर,नैन मिले दुई नैन निढालै।
चलत ऐसेई पग डगमगै,उपवन अहै कुसुम निहारै।
दैखौ भ्रमर गूंजत कुसुमा,रैनही गत रसमान बहारै।
प्रेम विवश जड लाल हौऐ,लली लाल रस प्रेम लुटावै।
लाल लली भए है ऐकौ,प्यारी सिंधु सुधा मिलावै।

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