लाडली जु व लालजु एक मयूर को बीच मे लिए बैठे है।मोर के इस ओर लाडलीजु व उस ओर लालजु बैठे है।
प्रियाजु अपनी हथेली पर कुछ दाने रख मोर को खिला रही है।एक हाथ इसकी पतली,लम्बी,कोमल ग्रीवा पर रखे है,जिसे रह रहकर सहला रही है।
लाडलीजु के नयन मयूर व लालजु के नयन लाडली जु की ओर लगे है।
लाडली जु अति गम्भीर मुद्रा मे है,मानो डूबी हुई है किसी भाव मे।
नयन दरश न होते देख लालजु स्वामिनी के नयनो को आकृष्ट करने हेतु लालजु एक उपाय करते है।
जिस कर पर दाना रख लाडलीजु मयूर को खिला रही है,लालजु उसके नीचे अपना कर रख पकड लेते है।
एक स्पंदन से लाडली जु जगी सी होकर नयन लालजु के नयनो पर रख देती है।
लालजु नयनो से कुछ कहते है, प्रत्युत्तर मे लाडलीजु के दो सुन्दर अधर खिल जाते है।
....और युगल एक दूसरे से लिपटे,एक दूसरे का कर थामे निकुंज की ओर चल दिये।
कुंजही बैठौ लाल लली,बीच मौरा लए बैठाए।
मग्न भयी भाव लाडली,कर मौरा भोज कराए।
नयन सु वंचित भये,लाल कर ही धर दीन्है।
मिलित भयै द्वौ नयन,बात कछु चुप कर लीन्है।
अधर खिलै द्वौ कमल,मानौ आज्ञा लालजु पाई।
बंधै आलिंगन दुई चलै,प्यारी किरपा निरखत आई।
Comments
Post a Comment