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लली लाल दुई सेज सजे बैठे , आँचल जु

युगल लाडले निकुंज की इस शैय्या पर ऐसे बैठे है,की सिराहने के दाई ओर लाल जु व बाई ओर लली जु है।दोनो के चरण नीचे लटके हुए पर भूमि को नही छू रहे है।दोनो पैर समांतर नही एक कुछ ऊपर व एक कुछ नीचे है।
लाडली जु जरा टेढी सी बैठी है और लालजु इनकी कमर पर लुढकै से बैठे है।
सामने पुष्प की कुछ पंखुडियाँ पडी है।जिनसे पूरी तल्लीनता,गम्भीरता के साथ लाडली जु कोई आकृति बना रही है।लालजु भी बडे ध्यान से देख रहे लाडलीजु द्वारा बनाई जा रही आकृति,बीच बीच मे कुछ झाँकते हुए से ललीजु के मुख को देख लेते है,नयनो मे न देख पाने पर पुनः अनमने से हो आकृति देखने लगते...
आकृति के पूर्ण होते ही लालजु मुस्कुराकर लली के झुमके की ओर संकेत किये...एक स्वीकृती भरी मुस्कुराहट से लली जु नयन झुका ली।अब लाल जु की बारी,ये चतुर शिरोमणी कैसे यह सुनहरा अवसर छोडते भला।झट से लगे पुष्पो की पंखुडियो से आकृति बनाने और बना दीये नयन।अहा,नियमानुसार लाडली जु को अपने नयनो के संकेत से बताना लालजु ने क्या आकृति बनाई।
लालजु परम प्रसन्न इनको लली जु के नयन सिंधु मे डूबने का मौका जो मिल गया।
लली जु धीरे धीरे सकुचाती हुई सी पलको को उठा रही है।और  लो मिल गये चंद्र चकोर.....
अब,पलक स्थिर हो खुली की खुली है,रस सिंधु बस बाँध तोडने को ही....
एक प्रेम क्रीडा,दो युगल नयनो को अटका गई.....

लली लाल दुई सेज सजे बैठे,लाल लली ढुरै कछु नीकौ।
करत क्रीडा पंखुरी लै कुसुम कौ,लली चित्र गहन हो खीचौ।
मुस्कावत लाल कर नैन कुणडल,बारी लाल लै कुसुमा अहौ।
चपल बनावत हौ लली नैना,हस नैनन लली कौ गहौ।
मंद उठाय नैन लली भारी,अरू चंद्र चकोर दुई मिलौ।
पल न हिरत गिरत दुई पलका,अहा!प्यारी निरखत ही रह्यौ।

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