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पुलिन जमुना राजत पितांबर लली , आँचल जु

यमुना पुलिन पर श्यामसुन्दर जु के पीतांबर पर विराजती हुई प्यारी लाडली जु रज मे लकडी की एक तूलिका से चित्र बना रही है।
कुछ ही दूरी पर लालजु लाडलीजु के लिए,लाडलीजु की चुनरी मे पुष्पो का चयन कर रहे है।
पुष्प चयन करके लालजु जैसे ही कुँवरि के समीप आए सहसा एक पवन का तेज झोका आया चुनरी लालजु के हाथ से छूट गयी और सभी पुष्प उछलकर लाडली जु के उपर बरस गए।
अहा! यह किसी सखी ने ही पवन रूप किया होगा न,युगल सुख वर्धन को....
सहसा यू हुई पुष्प वृष्टि से लाडली जु बैठे  बैठे अपने बडे बडे सुंदर नेत्रो को उपर उठाती है तो अटक जाती है प्रेमाधिक्य से बहते हुए लालजु के नयनो से....
दोनो ही जड हो,नयनो से प्रेम बरसाते हुए एक दूसरे मे खो चुके है.....लाडली जु बैठी हुई और लालजु  कुछ कुछ लाडली जु पर झुके हुए से खडे है.....


पुलिन जमुना राजत पितांबर लली,तूलिका सो रज चित्र बनावै।
कछु ही दूरि लाल चुनरिया झौरी,पुष्प अती मनभावन चुनावै।
लै सम्मुख ज्यौ लली आवै,पवन लली पै कुसुम बरसावै।
उचक पडी लली नैन उठाए,बहवतौ नैन प्यारी दुई मिल जावै।

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