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मोरकुटी युगलरस-16 , संगिनी जु

मोरकुटी युगलरस-16

जय जय श्यामाश्याम  !!
परस्पर निहारने में जब दो तृषित प्रेमीजन बाहरी और भीतरी अलगाव की तरंगों से प्रभावित नहीं होते तो उनमें रस जड़ता आने लगती है।यही हाल अब श्यामा श्यामसुंदर जु का है।निरंतर एक दूसरे को निहारते युगल ऐसे हैं जैसे उनमें परस्पर अनुभूति खो गई है और श्यामा जु स्वयं को श्यामसुंदर और श्यामसुंदर जु स्वयं को श्यामा जु मानने लगे हैं।दोनों एक दूसरे का आभास खो कर स्वयं भिन्नता में ही अभिन्न जीने लगे हैं।

     मोरकुटी की पावन धरा पर श्यामा श्यामसुंदर जु यूँ जड़रूप स्वयंचित्त जब गहन चिंतन में रस अनुभूति खोने लगते हैं तो लीला विस्तार थम जाता है तब कोई विकास ना होने के कारण प्राकृति में भी रस जड़ता आने लगती है।ऐसी परिस्थिति आने पर सखियाँ रस जड़ता की अनुभूति करें इससे पूर्व ही सेवारत होकर सतर्क हो जाती हैं।

      गहन रस जड़ता भी सखियों को जड़ नहीं कर पाती क्योंकि उनका भाव वहाँ सेवा युगल रस को बढ़ावा देना है और अगर वे भी जड़ हुईं तो सेवा तो रूकेगी ही साथ ही रसप्रवाह भी।सो सखियों का युगल में इस रसजड़ता कोई अनुभूत करना चिंतित होना ही है।

      श्यामा श्यामसुंदर जु की रसक्रीड़ा थमे नहीं इस भाव से श्यामा जु की कायव्यूह सखियाँ तुरंत उपाय तलाशने लगतीं हैं।ललिता सखी जुलाई वीणा बजाना रोक नहीं सकतीं क्योंकि इससे युगल के भीतर की रस प्रगाढ़ता रूक जाएगी जो पूर्वराग हेतु ही गहनतम हो चुका है।तो अब क्या हो यह सोच सखियों में गहन चिंतन है।आपस में कुछ कह कर वे इन पलों की व्याकुलता को रोक नहीं सकतीं सो गहन मौन में उतर कर युगल की इस भावदशा का पान करतीं अत्यधिक व्याकुल हो उठी हैं।

       तभी वृंदा देवी जो पहले से ही सेवारत तो हैं ही पर अब इस रस जड़ता को रोकने हेतु उपस्थित होती हैं।उनके हाथों में सुंदर महकते गुलाबी पुष्प हैं जो श्यामा जु को अत्यधिक प्रिय हैं।वृंदा देवी चहकते पक्षियों को इशारा भर करतीं हैं कि सब सुंदर छोटे छोटे पक्षी डाल पर बैठ कूहु कूहु कर मधुर रागिणी छेड़ देते हैं।

"जय हो श्यामा जय जय श्याम"

यह मधुर चहचहाहट पवन की मंद मंद सरसराहट के साथ घुल कर श्यामा श्यामसुंदर जु के मयूरपंखों को सरसरा देती है।वृंदा देवी गुलाबी पुष्पों की पंखड़ियों को श्यामा श्यामसुंदर जु जिस कमल पुष्प पर जड़वत् नृत्य क्रीड़ा में मग्न हैं वहाँ बिखेर देतीं हैं।श्यामा श्यामसुंदर जु के पदकमलों में गिरे सखीरूप मोरपंख गुलाबों की महक व पवन की सरसराहट से तनिक हिलते डुलते हैं और प्रियालाल जु के सुकोमल चरणों में स्पंदन रूप हल्का स्पर्श दे देते हैं।

     बलिहार  !!आहा यह स्पंदन श्यामा जु की कायव्यूह सखियाँ ही जान सकतीं और श्रीयुगल को दे भी सकतीं।अद्भुत प्रेम की अद्भुत क्रीड़ाएँ और अद्भुत रसिक हृदय के मधुरातिमधुर प्रेम में डूबे भाव।जाने अब क्या रूपरेखा होगी इस अद्भुत नृत्य रसलीला की जिसे स्पंदन रूप सखियों ने ज़रा सा सहला हिला दिया है।
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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