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Showing posts from April, 2016

राधिके! तुम मम जीवन - मूल।

राधिके! तुम मम जीवन - मूल। अनुपम अमर प्रान - संजीवनि, नहिं कहुँ कोउ समतूल।। राधिके!... जस सरीर में निज निज थानहिं सबही सोभित अंग। किंतु प्रान बिनु सबहिं ब्यर्थ, नहिं रहत कतहुँ को...

रति, प्रेम और राग के तीन-तीन प्रकार

रति, प्रेम और राग के तीन-तीन प्रकार कृपापत्र मिला। आपके प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में इस प्रकार हैं- भगवान श्रीकृष्ण आनन्दमय हैं। उनकी प्रत्येक लीला आनन्दमयी है। उनकी मध...

भगवत् प्रेम - भाई जी

भगवत्प्रेम भगवत्प्रेम के पथिकों का एकमात्र लक्ष्य होता है-भगवत्प्रेम। वे भगवत्प्रेम को छोड़कर मोक्ष भी नहीं चाहते- यदि प्रेम में बाधा आती दीखे तो भगवान के साक्षात् मिल...

सच्चा एकांत

सच्चा एकान्त वस्तुतः बाहरी एकान्त का महत्त्व नहीं; सच्चा एकान्त तो वह है, जिसमें एक प्रभु को छोड़कर चित्त के अंदर और कोई कभी आये ही नहीं-शोक-विषाद, इच्छा-कामना आदि की तो बात ह...

लीलामय भगवान लेख 3 - भाई जी

लीलामय भगवान 3 24- भगवान के सम्बन्ध होते ही सब दोष मिट जाते हैं। भगवान ने अपनी यह शक्ति लीला-कथा में छिपा रखी है। भगवान ने कृपा करके अपनी लीला-कथा-माधुरी इसीलिये छोड़ रखी है कि ज...

छोड़ो मोहन , छोड़ो न .... तृषित

छोड़ो मोहन , छोड़ो न .... मैंने तो यूँ कहा था मधुसूदन उस रात अंग लगी थी जब और तुमने सच में मुझे छोड़ ही दिया । तुम तो ना लौटने को आये थे , फिर ना कुछ और छुने को छुये थे पर देखो तुम लौट भी गए , अ...

अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष श्रिया दीदी काव्य

अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है, अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया, पलक-पात पर थिरक रही रजनी की माया, श्यामल यमुना सी पुतली के कालीदह में, अभी रहा फुफ...

मगर निठुर न तुम रुके , श्रिया दीदी काव्य

मगर निठुर न तुम रुके, मगर निठुर न तुम रुके! पुकारता रहा हृदय, पुकारते रहे नयन, पुकारती रही सुहाग दीप की किरन-किरन, निशा-दिशा, मिलन-विरह विदग्ध टेरते रहे, कराहती रही सलज्ज सेज की ...

अब बुलाऊँ भी तुम्हें तो तुम न आना श्रिया दीदी काव्य

अब बुलाऊँ भी तुम्हें तो तुम न आना! टूट जाए शीघ्र जिससे आस मेरी छूट जाए शीघ्र जिससे साँस मेरी, इसलिए यदि तुम कभी आओ इधर तो द्वार तक आकर हमारे लौट जाना! अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!! देख ...