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वृन्दावन पद , समाज श्रंखला से

आजु कौतिक श्रीवृन्दावन वंशीवट ।
घूँघट मुकुट काछनी काछैं आछैं नाचैं जमुना तट।।
देसी सुलप सुधंग अंग मिलि तान तिरप में निपुन मनौं नट।
नेंम बिरस रस रह्यौ परस्पर बिबस भये छवि निरखि छुटी लट।।
सारी सिरै सँवारी प्यारी सखी पिय के अंग झांपति पियरे पट।
श्रीबिहारिनिदासी श्रीहरिदासी के सँग गावति रीझि राग गौरी ठट।।

***2***

नवल वृन्दावन नवल बसन्त।
नव द्रुम बेलि केलि नव कुंजनि नवल कामिनी कंत।
नव अलि अलक झलक नव कोकिल नव सुर मिलि बिलसंत ।
नव रस रसिक बिहारिनिदासी कैं नव आनँदहिं न अंत।।

***3***

नवल बसन्त  नवल वृन्दावन।
नव परिमल अलि लुब्ध तरुनि तन।।
नव पराग अनुराग मगन मन।
नव विहार बलि दासी रसिक जन।।

***4***
बसिबौ श्रीवृन्दावन कौ नीकौ।
छिन छिन प्रति अनुराग बढ़त दिन दरस बिहारी जी कौ।
नैनं स्रवन रसना अँचवत अंग संग प्यारी पी कौ।
श्रीबिहािरीबिहरिनिदासी लड़ावति बिछुरत नाहिं रती कौ।।

***5***

जै श्रीवृन्दावन विराजै ;जहाँ नित बिहरैं श्रीरसिकराइ ।टेक।
झिलिमिलि झिलिमिलि आसपास श्रीयमुना अति सोहै।
मिलि खेलैं दोऊ जलाथला सखि देखि मेरौ मन मोहै ।।1।।
सौरभ कन पुलिन रंग विमल कमल फूले।
सारस हंस चकोर मोर मृदु कूजित कल कूले।।2।।
कुसुमित कल कुंज लता बिबिध रँगनि फूली।
मत्त मुदित गुंजित अलि अवली फिरत भूली।।3।।
बहै सीतल मन्द सुगन्ध पवन सुक पिक सुर गावैं।
सुनि स्रवन रवनि रवन मदन मोद बढ़ावैं ।।4।।
बनी वीथी विचित्र चित्रित धर प्रतिबिंबित झाई।
मंडल मनिमय मौजमहल मुक्तनि छवि छाई।।5।।
पुहुप वितावनि झलमलैं झरोखनि सहचरी दुलरावैं ।
अति अद्भुत सुख सेज सरस लाड़िली लाल लड़ावैं ।।6।।
गौर सुभग साँवल सखि अंग अंगनि राजैं।
पहिरैं पट पीत अरून मौजनि छवि छाजैं ।।7।।
बिलोकित बिबि वदननि छवि हँसि हँसि उर लागैं।
बचन रचन कहैं प्रिया जू लाल यहै रति मांगैं ।।8।।
मंद मंद मधुरे मधुरे सप्त सुरनि गावैं।
तान तरंग भृकुटि भंग अंग अनंग नचावैं।।9।।
दोऊ रूप उदित प्रेम मुदित मत्त मननि करषे ।
गुन रीझि सुरति अंग अंग हरषि सुखिन बरषे।।10।।
श्रीकुंजबिहारी बिहारिनीदासी सुख संतत करत खवासी।
नव नव रति छिन छिन प्रति सुख निरखि नागरीदासी।।11।।

***6***

श्रीनिधिबनराज में फूल महल दोऊ फूले।
काम केलि आतुर दोऊ प्रीतम अंग अंग अनुकूले।।
हाव भाव आलिंगन चुम्बन गाढ़े गहि भुजमूले।
श्रीललितकिसोरी हरषि हिंडोरें नाभि कमल मधि झूले।।

***7***
जय जय श्रीवृन्दावन सहज सुहावनौं ।
नित्यबिहार अधार सदा मन भावनौं।।
परम सुभग श्रीजमुना पुलिन मंजुल जहाँ।
बिमल कमल कुल हंस सकल कूजित तहाँ।।
बिमल कमल कुल हंस कूजित सेवत खग मृग सुख भरे।
मुदित बन नव मोर निर्त्तत राजत अति रुचि सौं खरे।।
कुसुमित कुंज रसाल लता अति सोहहीं।
अलिकुल कोकिल कीर कूजित मन मोहहीं।।
त्रिविध समीर बहत रस सुखद मनहिं लियें।
बसंत सरद रितु सेवत चित वित मनहिं दियें।।
बसंत सरद सेवत सदा रितु सुख समुद्रहिं को गनैं ।
विविध भाँतिन भूमि राजत सौभा देखत ही बनैं।।

***8***
सुनहु रसिक श्रीवृन्दावन कौ जस।
कुंज केलि मानिनी मनोहर परबस भये नाहिने अपनें बस।।
इहि बन नित्य नवीन जुगलबर द्रुम दल दिव्य स्रवत सलिता लस।
श्रीबीठलबिपुल बिनोद बिहारी कौ पान कियौ चाहत रसना रस।।

***9***
जै जै जै श्रीनिधिबन राज।
गौरस्याम कौं अति सुखदाई सब बिधि करत दुहुँनि के काज ।।
महारूप रसरासि छबीले अद्भुत जामें प्रेम समाज।
श्रीकुंजबिहारिनि ललित रसिकबर तुमहीं कौं है हमरी लाज।।

***10***

श्रीनिधिबनराज की जै रहिये।
जामें नित्यबिहार निरंतर काम कहानी कहिये।।
श्रीहरिदास सुभायक अंग संग और कहा हमें कहिये।
श्रीकुंजबिहारिनि प्रानपियारी उमंगि उमंगि दुलरैये।।

***11***
यह जग नाम धाम वृन्दावन भेद न काहू पायौ ।
अपनी बुद्धि बिकार मुनिन मिलि नेति बेद हू गायौ ।।
आदि मध्य अवसान एकरस काम प्रेम छबि छायौ ।
भगवतरसिक अनन्य भेद यह जीवन जुगल बतायौ ।।

***12***
कुंज कुंज डोलनि मृदु बोलनि टूटी लर
छूटी पोति अति छबि लागति।
भँवर गुंजार करत संग डोलत मानों
मेरु रागनी के संग लियै रागति ।।
जूथ अनेक सुघर जुवतिन के तुम्हरी रीझि पलब नहिं लागति।
श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा कुंजबिहारी पर
तन मन धन न्यौछावरि करौं कागति ।।

***13***
कालिन्दी कूल कलनीय औ तमालन तल,
करुणानिधान वास करुणा कै दीजिये।
पद अरविन्द मकरन्द के मलिन्दन के,
दासन कौ दास जान कृपा अब कीजियै।।
अन्तरंग भाव ताहि आप ही प्रकाश करौ,
बाल ज्यों अबोध जान तात भांति रीझियै ।
सरस स्वभाव अहो सामरे सुजान कान्ह,
दास रणछोर की ये दंडवत लीजियै ।।

***14***
जै जै बिपिन बिहारी जू।
तन मन बिलसत अति सुखरासी रोम रोम हितकारी जू।।
अति आनंद भरी रसमाती छिन हूँ होति न न्यारी जू।
श्रीललितकिसोरी की निजु जीवनि कुंजबिहारिनि प्यारी जू ।।

***15***
कुंजनि तें उठि प्रात गात जमुना में धोवै।
निधिबन करि दंडौत बिहारी कौ मुख जोवै।।
करै भावना बैठि स्वच्छ थल रहित उपाधा।
घर घर लेइ प्रसाद लगै जब भोजन स्वाधा।।
संग करै भगवत रसिक कर करूवा गूदर गरैं।
वृन्दावन बिहरत फिरै जुगल रूप नैंननि भरैं।।

***16***
जै जै श्रीवृन्दावन चंद।
महारूप सुखरासि छबीले नित ही बिहरत आनंद कंद।।
जामें बसि जे अनत देत मन तेई हैं अति ही मति मंद।
रसिक सिरोमनि श्रीहरीदासी कीनें सहज प्रेम के फंद।।

***17***
जै श्रीवृन्दावन घन नव निकुंज में संतत बिराजत जोरी।
अति अगाध महिमा रस जिनकौ सो पैयत इक कृपा किसोरी।।
सुक नारद से भक्त मुक्त सनकादिक सुहृदनि हूँ तें चोरी।
श्रीबिहारीदास जस कहैं कहाँ लौं रसना सहस तऊ मति थोरी।।

***18***
सजनी नव निकुंज द्रुम फूले।
अलिकुल संकुल करत कुलाहल सौरभ मनमथ मूले।।
हरषि हिंडोरें रसिकराय बर जुगल परस्पर झूले।
श्रीबीठलबिपुल बिनोद देख नभ देव विमाननि भूले।।

***19***
श्रीवृन्दाबन बीथिन में जमुना पुलिन बीच
नित्य कौ बिहार श्रीबिहारिनिदासी पायौ है।
लाल अलबेलौ अलबेली संग बनी बधू
करनि काम की केलि कुंज में बसायौ है।।
बोलनि हँसनि मिलि खेलत रसीली प्रिया
ललित रसिलौ लाल कंठ लै लगायौ है।
निकट खवासी निजु दासी लियें बीरी कर
जुगल लडेती रीझि रँग बरसायौ है।
*** 20***

नमो नमो जै श्रीवृन्दावन रस बरषत जामें घन घोरी।
नमो नमो जै कुंजमहल नित नमो नमो जामें सुख होरी।।
नमो नमो जै कुंजबिहारिनि नमो नमो प्रीतम चित चोरी।
नमो नमो जै श्रीहरिदासी नमो नमो इनही की जोरी।।

***21***
आजु बधाई श्रीवृन्दावन सुखसिंधु हिलोर।
प्रिया लाल तन मन हुलसानें मनसिज (सौं)मेघनि (की) घोर।।
सब सखी उमंगि उमंगि गुन गावैं नाचत मोर चकोर।
श्रीललितमोहिनी के उर बिहरैं
नैंन कमल चितचोर।।

***22***
आजु बधाई श्रीवृन्दावन।
कुंजमहल श्रीबिहारी बिहारिनि केलि करत छिनही छिन।।
श्रीहरिदासी जू लाड़ लड़ावति इनही कौ ये हैं धन।
श्रीललितमोहिनी की निजु जीवन ये वे वे एकै मन।।

***23***
नव निकुंज मंदिर में ए फूल फूले री श्रीवृन्दावन।
जुगल नवल मुख कमल बिराजत गौर बरन साँवल तन।।
सरस पुलिन सेवत सिज्या सखी उपजत कोटि मदन मन।
झूलत फूलत प्रेम परस्पर सौरभ स्वास मलय पवन।।
महामाधुरी पीवत नैंनन अलि सहज स्नेह सुख सदन।
श्रीबिहारिनिदासी रसिकनि की जीवन संतत सुखद धनी धन।।

***24***
जै जै श्रीवृन्दावन सुखदाई।
ललित लता झूमी द्रुम बेली मनिमय रज कर्पूर सुहाई।
त्रिबिध पवन मन भवन मधुप कूजत पंछी जमुना रस राई।
कुंजमहल कुसुमित सिज्या पर बिहरत कुँवर कुँवरि सुखदाई।
श्रीललितादिक निरखति हरषति नित जै जै श्रीवृन्दावन सुखदाई।।

***26***
ऐसी रितु सदा सर्वदा जो रहै बोलत मोरनि ।
नीके बादर नीके धनुष चहुँदिसि नीकौ श्रीवृन्दावन
आछी नीकी मेघनि की घोरनि।।
आछी नीकी भूमि हरी हरी आछी नीकी
बूढ़नि की रेंगनि काम किरोरनि ।।
श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा कैं मिलि गावत
राग मल्हार ज्मयौ री किसोर किसोरनि।।

***27***
हरी हरी भूमि अरून बूढें अरु नाचत मुदित वन मोर।
सारी सुहीजुही सिर गूंदै बूंदै वचन मृदु स्याम गगन घन घोर।।
हरषि हरषि बरषत मन ही मन प्रेम परस्पर आनंद हियें हिलोर।
श्रीबिहारिनिदासी दंपति सुख दरसत छिन ही छिन रंग बढ्यौ दुहुँ ओर।।

***28***
एरी मेरौ वृन्दावन सुखधाम।
प्रिया लाल कौ लाड़ लड़ावत सब बिधि पूरन काम।
महा प्रेम सोभा कौ सागर रोम रोम अभिराम।
श्रीललित रसिकबर जू की जीवनि केलिकुंज बिश्राम।।

***29***
जै जै श्रीबनराज हमारे।
जिनकी कृपा बिहार बिलोकयौ श्रीहरिदास सम्हारे।।
छिन छिन नई नई प्रीति प्रिया की प्राननि हूँ तें प्यारे।
श्रीरसिकसखी अंग संग सहजही कबहूँ होत न न्यारे।।

***30***
माई धामिनि कौ धामी धाम धाम वृन्दावन हैं।
प्रियालाल रंगभरे राजै सदाई जहाँ
एक जिय एक प्राण एक तन मन हैं।।
महारूप रस रास सुख के बिलास दोऊ
मिलें रस सिंधु आनन्द के घन हैं।
ललित हिये में आई लालन की भई भाई
रोम रोम फूले ऐसे पाये रंक धन हैं।।

***31***
बंदे श्रीवृन्दावन की भूमि।
ललित लतानि कुंदनमनि खाँची बेलि द्रुमनि रहीं झूमि।।
केलि निकुंज नागरी नागर बदनचंद कौं चूमि।
श्रीरसिक रूप दंपति छबि संपति सुरंग रंग अलि घूमि।।

***32***
कीजै रंगमहल की दासी।
स्यामा स्याम केलि अवलोकौं श्रीहरिदासी पासी।।
बिबिध बिहार सार सुख सजनी बिपुल बिहारिनि आसी।
सरस नागरी नरहरि रसिक ललित जु चरन उपासी।।
वृन्दावन की सहज माधुरी श्रीस्वामी परकासी।
रूप अनूप निरखि छबि अद्भुत महामधुर मृदु हासी।।

***33***
भाग बड़ौ (श्री) वृन्दावन पायौ।
जा रज को सुर नर मुनि बंछित बिधि संकर सिर नायौ।।
बहुतक जुग या रज बिनु बीते जन्म जन्म डहकायौ।
सो रज अब कृपा करि दीनी अभय निसान बजायौ ।।
आइ मिलयौ परिवार आपनो हरि हँसि कंठ लगायौ।
स्यामा स्याम जू बिहरत दोऊ सखी समाज मिलायौ ।।
सोक संताप करौ मति कोई दाव भलौ बनि आयौ।
श्रीरसिकबिहारी की गति पाई धनि धनि लोक कहायौ ।।

***34***
जै श्रीवृन्दावन आनंद न अंत। तहाँ श्रीस्यामाँ संतत बसंत।।
सब रितु राजत रसिक संग। ताके सुखदायक सब अंग अंग।।
उपजत तन अनंत अनंग रंग। यौ बिहरत अनुरागी अभंग।।1।।
नख सिख रस श्रीवंत मंत । सखि प्रेम पुलकि कामिनी कंत।।
दोऊ घन दामिनी ज्यों मिलि लसंत।हौं दिन दरसौं बिलसत हसंत।।2।।
कनकलता कुसुमित रसाल। ताके लोभ सु अलि साँवल तमाल।।
जाके अधर बिंब सिंदूर भाल। भई बिपुल पुलकि मनसा बिसाल।।3।।
ललित बलित श्रीफल बिलास। जाके नव जोवन मंजरी सुबास।।
ताके अलक भृंगु मधु गंध लोभ।अंचल चंचल चित छुवत छोभ।।4।।
जंघ कदलि मृदु भुज मृनाल। ताके नीलोत्पल लोचन गुलाल।।
ताके चरन कमल कर कमल लाल।सखी प्रान जीवन मोहन मराल।।5।।
रुचि रवनि कवनी किसोर।जानी नहिं निसि गत भये भोर।।
चितवत प्यारी बिधु बदन ओर। पिय पान करत लोचन चकोर।।6।।
पुनि नाभि निरखि नागर गंभीर ।अति व्याकुल ह्वै बैठे अधीर।।
पुनि नीबीबंद अवलंब स्याम।सखि रहसि रचन रिझवत सकाम।।7।।
आतुर चातुर अति बड़ बिनोद।सखि रहसि बहसि मन मदन मोद।।
दोऊ चाहि रहे दृग दृष्टि जोरि । छोरत छबि कर छंद बंद निहोरि।।8।।
सुख आलिंगन चुंबन मिलाप।कूजित कोकिल कोमल अलाप।।
हार टूटि कल बलय फुटि।गये कसन कंचुकी चिकुर छूटि।।9।।
आली बाली बर बिमल वारि । सेवति सिंचति सुख मुख निहारि।।
दोऊ सकत न बिबस बसन सँभारि।।श्रीबिहारिनिदासी हँसि हँसि सिंगरि।।10।।

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