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भाव कणिका बना दो न , अमित बाँवरी जु

*भाव कणिका बना दो *

छोटी सी प्रार्थना मेरी मेरे प्राणप्यारे युगल से

भाव कणिका बना दो न
कैसे प्यारी निहारे तुमको
कैसे प्रिय पुकारे तुमको
कैसे निरख निरख सुख पावे
छवि नेत्रों में बसा दो न
मेरी यही इक विनती सुनलो
भाव कणिका बना दो न

कैसे भाव तरँग उठे हैं
कैसे हृदय पुष्प खिले हैं
नित्य तुम्हारी वेणु सुनकर
हृदय थोड़ा मचला दो न
मेरी इक यही विनती सुन लो
भाव कणिका बना दो न

तुम्हारे नेत्रों से ही निरखूँ
हृदय प्रिय की छवि से भर दूँ
युगल प्रेम की रीत अनोखी
बाँवरी को भी सिखला दो न
मेरी इक यही विनती सुन लो
भाव कणिका बना दो न

प्रियतम पद रेणु को पूजें
प्रिया जहां जहां चरण धरे है
प्रिया सेवा सुख साधन को
प्यारे कितने भरे पड़े हैं
सेवा भाव बाँवरी को होवै
सेवा कोई दिला दो न
मेरी इक यही विनती सुन लो
भाव कणिका बना दो न

प्रिया नाम से प्रियतम अलंकृत
प्रियतम नाम से प्रिया हिय झंकृत
पियप्यारी का सुख हो जिसमें
मृदुल कोई गीत सुना दो न
मेरी इक यही विनती सुन लो
भाव कणिका बना दो न

युगल प्रेम की रीत सिखा दो
बाँवरी को कोई विधी बता दो
प्रियाप्रियतम को नेह बढ़े निशदिन
हृदय इक प्रेम तरँग उठा दो न
मेरी इक यही विनती सुन लो
भाव कणिका बना दो न

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