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'मीठे आज बाँसुरी के बोल
राधा राधा नित ही पुकारत टेरत मोहन मृदु रस घोल
श्याम प्रिया की स्वांस सुधा अच अमल मगन करे अधर किलोल
वृंदावन जमुना शशि पुलकित सुनत अनंग अंग रहे डोल
प्रीतम अंक सुखद पौढ़ी गौरी खेलत फूँकत बाँस की पोल
कृष्णचंद्र राधाचरणदासि बर सुन सीखत नव गुन अनमोल'
अहा री...आज तो मधुर बोलै री बाँसुरी...पिय हिय की रसबातनि...
सखी...प्यारि जु को अधर रस पीवै और पियहिय सौं रस ही को विलसै...अहा !
परस्पर सुख हेतु स्वयं को कहना...अहा !!
अनूठा है ना यह...यह रसभाव...यह संवाद...यह रसवर्धक प्रेम...सखी जु...तुम मेरे सुख हेतु तुमको कहो और मैं तुम सुख हेतु खुद को कहूँ...अहा...विचित्र पर प्रेममय रसीला मदभरा सत्य यह... ... ...वेणु सुनो हो !...हाँ सुनो तो हो...ऐसी...जैसी जाने कबहुं ना सुनो हो री...गहनतम सुनो हो...शब्दहीन हो सुनो हो ना...जुगों जुगों से सुन रही ना...सच !ऐसो मधुर कछु ना होवै री...सुधि बिसरा दे...ऐसी जे वेणु गोपाल की मधुरिमा...अहा !
मधुरिमा...आह !मधुरिमा ही तो है री...
सुन सखी...सुन तो री...सुनाई आवै ना जे मधुरिमा...आ बिराज तनिक दासी संग...और सुन हिय सौं... ... ...
जे रसभरी मधुर वेणु...अहा !...अहा...*रम्य*...अहा !...मन रम जावै है री...मधुरिमा...जानै कैसे !मधुर मधुर रमण करै है ना...रोम रोम स्पंदित है जावै ना...अहा री !!
श्यामसुंदर हिय सौं बजावै है री...और यांके हिय में तो प्यारि जु बसै है ना...यांके लालित्य सौं रमी यांके हिय में बसी हियवासिनि...प्यारे से वाणी रूप मधुर वेणु सौं सब कहवै और कहलवा लेवै है...वह भी जो शब्दों से कह्यौ ना जावै यांके मुखन सौं...हाय !!पियप्यारि...हियप्यारि की ही तो वाणी है जे वेणु री...प्यारे के हिय की बात...अर्थात प्यारि की बात हियवासित प्रियतम सौं...रसीली रंगीली की मधुर...आह !मधुर रसवार्ता...अहा !
सखी जु...जे रसवार्ता श्यामसुंदर के अधरों से मधुरिमा के हिय सौं झरै...और बहै है...प्यारि जु हिय में विराजित लालित्य में पगी रसवार्ता करै है और जब जे रसवार्ता अति प्रगाढ़ है जावै ना...तब प्रियतम जे रसनहुं कौ वेणु में भर भर अधर धर प्यारि से हिय की अनकही बातें कहै है...अहा... !
सखी री...जियहियवासित पियप्यारि सकुचावै लजावै है और अति मधुर व रसभीजे अपने रसस्वर सौं वार्ता करती प्रियतम कौ मन मोहि लेवै है री...
तू सोचै है ना री...जे वेणु तो राधानाम ही उवाचै है...हाँ !तो जेहि तो सुझानो चाहूं री...भोरी प्यारि सखी...जे वेणु...अति रसीली है जावै है प्रियतम के अधररस सौं और हिय में उतर तनिक प्यारि चरनन की निरखन सौं निरखै ना...तो राधा राधा ही गावै है...और प्रियतम को सुख देवै है...अहा !तो ऐसो लगै जैसे पियप्यारि कछु कह रही प्रियतम सौं...और प्रियतम...जाकों पतो ह्वै के प्यारि इतनी सुकोमलतम हैं कि यांकै अधरों से शब्द रूप रस झरनौ भी भार सम होवै सो वे हियप्यारि कू श्रवनन तांई अपनो तन मन प्राण कौ रस वेणु में फूँकै है...और सुनै राधानाम...जियहिय प्यारि जैसे बतियाए रही...यांको रस आवै...*रम्या*आह... ... ...रम्या के यह रसीले रंगमगे वाक् सुन...प्यारि जु अति मंद मंद मुस्कन से लजा कर जब हियपिय सौं कछु कहै ना तो जे मधुर रस वेणु रूप यांकै हिय में उतरे...और गहरावै...प्रियतम कू रिझावै कै तांई ही हियवसित प्रिया जु वेणु सौं अपनो ही नाम सुनावै और प्यारि सुख हेतु ही प्रियतम वेणु को अधरन सौं लगाए कै प्यारि उवाच सुनै...अहा...
कैसा मधुर प्रेम...अहा !कैसी मधुरिमा...कैसी मधुर*रम्य*रसीली वाणी रंगीली की के प्रियतम के अधरन सौं यांकै रोम रोम में घुल घुल जावै...परस्पर सुख हेतु स्वयं कौ गान...अहा... ... ...
हियवसित सुवदनी गौरांगी प्यारि जु के मुखारविंद से वेणुरूप अक्षरमाधुर्य स्फुरित हो रहा जिसे सुन परमानंद में डूबे श्यामसुंदर रसस्फुरन से वेणुमाधुरी छलका देते...सर्व रसस्वर मौन हो जाते जब जे प्यारि जु वेणु रूप रसवार्ता करतीं और हियपिय को मुग्ध कर देतीं...ऐसा सुस्वर जो अतिहि मधुर कोकिली और रसीली बहती सरसराती झरझराती रससुधा को भी मौन कर देती सखी जु...
*रम्यवाक्*प्यारि जु कौ बोल सुबोल पिय के तन मन प्राणों में रस सम रमण करैं और रम्या के अति सुमधुर उवाच को ऐसो मनन श्रवण कि सम्पूर्ण सृष्टि अवाक् है जावै री...और...और प्रियतम तो रस में डूब डूब जावै हैं...अहा... ... ...
प्यारि जु को सखिन ने मध्यस्थ छुपाए लियो पर याके हिय सौं बहतो राधानाम जो पियहिय को रस ह्वै कै बहै यानै ना छुपा सकैं सो जे लुक्का छिप्पी तो मात्र सखिन सुख हेत पर यांकी रसीली मधुशाला रम्यकान्ता तो हिय सौं बातनि करै री...प्रिय रीझ हा हा पुकारते... ..
'मधुरे मन मोहन रसभींने
मृदु बोलन डोलन चितवन मृदु,मुसकनि चित्त चंचल वश कीने
प्रिया जिया माधुर्य रस अवधि,मानिनी स्वामिनी प्रेम प्रवीने
राग रंग गुन कोक कला निधि,रसिक शिरोमणि रूप नवीने'
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रीहरिदास !!
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