*मेरी गति तुहि है लड़ैती प्रानप्यारी जू*
Do Not Share
का करूँ...कासे कहूँ... ... ...
जे स्यामलगौर जोरि अद्भुत है री...कबहूँ निहारि ना इन नैनन सौं...पर जाने ना क्यों जे निगोड़ी आँखिन सौं किंचित हटै भी ना है री...जहाँ कहीं गौरस्यामल कोई छबि दीखै है जे दर्पण सम हिय चकचौंध से रूप सरूप को सिंगार करा...ना केवल उन्हें निहारै है अपितु जे कर्ण तो श्रवन करने लगते हैं जैसे ये छबियाँ कोई खेल खेल रहीं...हाय री...जे ना खोले बने...ना मुँदे... ... ...
जे योगातीत रसीली रसछबियाँ...
रात्रि के आगोश में गहरी लिपटी ये चाँदनी छिटकती बिथुरे उलझे केशों तले सुषुप्त जैसे भोर होगी ही ना कभी...एक एक तारागण गवाही दे रहा इनकी चाँदनी में नहाया हुआ कि सम्पूर्ण रात्रि श्यामल श्यामल नैनों पर काले केश एकमेक हुए गहराते रहे और परिणामतः जे कालिमा और जे सन्नाटा...पर रसीला रहस्यात्मक... जैसे...आह... ... ...गोरी सेज पर लेटी केश खोल अपने ही मुख को ढाँप ले और सोचे उषा कब घटती...
"आजु पिय संग जागि भामिनि..."
सखी री...और भोर भह्यै ते स्वच्छ निर्मल नीले आसमान की छटा तले गोरी संग रात्रि भी गौर हो उठी...जैसे दमकती रश्मियों से सजी सजीली नवदुल्हनि सी सुबह का सूरज और उस संग खेलता विहरता रात्रि का बादल जो अपनी कालिमा को पूर्णतः विस्मृत कर गौर हो उठा है और उसके गौर अंगों से सुनहरी आभा छिटक कर गिर रही हो प्रकृति की गोद में...अहा...
ऐ री...चाँद भी झरोखे से इन गौर गौरा छबियों को चुपके से निहार रहा...और कर भी कर सकता ना यह शीतलता का पुंज...प्रेम तो अतिहि गहन तप्त व्याकुल अतृप्त रस का पुंज जो ठहरा जिसकी तृषा गौर शीतलता में सिमटी सिहरी अतृप्त ही उमड़ती घुमड़ती रहै री...
जे तो ठहरी इन नैनन की चतुराई...ऐ री...अब जे कर्णप्रिय ध्वनियाँ और सुनाई आने लगैं हैं री...रोम रोम कर्णपुट होए कै सुने उनके मौन को भी...या यूँ भी कह सकती कि जैसे नवकपास के अति सुकोमल दो पुष्प नयनों से दूर पवन संग मधुर संगीत गुनगुना भी रहे हों तो सुनाई ना आवै पर पवन संग उनकी हिलन डुलन कर्णपुटों को सिहराने लगती री...अनछुआ रसीला...विरह को गहराता इनका मधुरिम रसीला संगीत...अहा...गौवर्धन की तरहटी से तो ना...हाँ...पर निश्चल दर्पणसम रिक्त आसमान में पड़ती दूर देस की झलकियों से ही विरहाग्न ऐसी उठती कि टीस बन अपने ही कानों में गूँज कर प्रियापिय की याद से घुलमिल मधुर सरगम सुनाई आने लगती इन रसीली छबियों में...हाय...मैं भी ना...पर कहै बिन रह्यौ ना जाए...
तो सुन री...जे रसीली रसध्वनियाँ का कहे हैं और कैसे खेलैं हैं री...
सखी...जे गौररंग नवरंग बदरा सुनहरी आभा से जैसे लुक्काछिप्पी खेल रहा...कभी पीछे चलता तो कभी झपट कर उसे धर दबोच ढाँप लेता...फिर...फिर...एक बार नहीं अनंत बार जे सुनहरी प्रेम पुंज गौर बादल से स्वयं को अनावरित करता और फिर...फिर आवरित होता...अहा...
सखी री...जैसे श्यामता में नहाई गौरता श्यामल हुई आगोश में थी...अब वही गौरता गौर देह संग विहरन कर रही और बार बार मधुर छेड़न से कभी इठलाती बलखाती सी...तो कभी आवेश में उससे आगे हो जाती...अद्भुत खेल चल रहा इन द्वैरस छबियों में जो एकरस से नहाई एक होते भी एक ना होतीं...
"डगमग डगमग चलै री गजगामिनि
संग संग असंग मन हरै री गौर साँवरी"
प्रीत कौ न्यारोई खेल...घिर आते गौर बदरा को कभी तो स्वयं को छूने देती ये रसीली सुनहरी गौर आभा तो कभी तनिक छिटक कर दूर हटती...जैसे श्यामसुंदर छूना चाह रहे प्यारी के वेश आवेश को पर प्यारी ना ना कहतीं किंचित कटीली हो जातीं भामिनि तो कभी कटाक्ष करतीं भृकुटितान से...पर स्याम से गौर हो चुके प्रियतम भी कैसे छाया भर भी दूर रह पाते ना...तो बस खेलते रहते...धूप छाँव...छाँव धूप का ये अनोखा माधुर्यस्कित प्रेम रससना रसीला खेल...अहा...
मुझे तो इन गौर स्यामल धूप छाँव के खेल में रमे इनकी कटिकिंकणी नूपुर की रसीली ध्वनियाँ भी सुनाई आने लगती हैं री...आह...
प्यारी जु चल हट कारे मतवारे रसचोर भृंग...धत्त वंशीवादक कुलनाशी निष्ठुर गोपीमनहरण...तो कभी दामिनी सम कौंधती घिर आए बदरा को कटाक्ष कर कर दूर हटातीं और नयनों से झरते प्रेमरस की मधुरिम ध्वनि को बेशक कटाक्ष रूप वाणी में बहातीं पर हियकंवल खिल खिल उठते प्यारी के जैसे कहना कुछ चाहतीं हों और कह कुछ जातीं नर्मपण्डिता कृष्णसुखार्थ व्याकुला श्यामा जु...शब्द जाल से स्वयं प्रकाशित कह रही हों...हाँ प्रियतम...जे सगरी रूप राशि तुम हेतु ही तो विस्तृत उद्घटित होती पर तनिक संभल कर...अहा... ... ...चतुर नागरि प्यारी सुकुमारी अति भोरि श्यामा जु...
"मेरी गति तुहि है लड़ैती प्रानप्यारी जू।
भई है प्रसन्न राधे हित हू कौ हित जानि सकल गुन निधान परम उदारी जू।।
सहज सनेही दोऊ रूप ही कौ रस पीवैं उमँगि उमँगि अंसनि भुज धारी जू।
ललित रसिक बर सदा ही समीप रहैं मिलत मिल्यौई चाहैं जीवन हमारी जू।।"
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रीहरिदास !!
Do Not Share. Do Not Share
Comments
Post a Comment