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आमंत्रण , बाँवरी जू

*आमंत्रण*

प्रियतम रसराज रसिक शेखर ने अपना वेणु नाद छेड़ दिया है। प्रियतम के हृदय की रस तृषाएँ, रस लालसाएं । आह !! वेणु रव में पिरो दी हों जैसे। अधरसुधा का वह आमंत्रण !! स्वतः ही प्यारी के हृदय को स्पंदित कर गया। जैसे ही एक एक रव प्यारी जु के कर्णपुटों से भीतर हुआ, रस राज की वह सभी मधुर चेष्ठाएं। प्यारी कोमला सुमधुर वल्लभा तो रसराज रसिक नागर की सभी चेष्ठाएं जानती ही है, परन्तु आज यह वेणु में भरा है आमंत्रण। प्यारे के हृदय से होकर अधरों से झरता हुआ यह आमंत्रण , अपनी मनोरमा तक । आह !! रसराज का यह सुमधुर *आमंत्रण*

*आमंत्रण*
प्रियतम के इस आमंत्रण से ही उन्मादित हुई जा रही उनकी नवल किशोरी प्रियतमा। हृदय का आमंत्रण स्वीकार हुआ हृदय से। आह !! व्याकुल हुई दौड़ती जा रही है । ऐसी व्याकुलता कि यह आमंत्रण इसी क्षण हेतु है। प्रियतम की पुकार प्रियतमा को आह्लादित कर रही। आह्लाद क्यों , प्रियतम का सम्पूर्ण आह्लाद नवल नागरी प्रियतमा ही तो है। यह सम्पूर्ण प्रेम आह्लाद प्रियतम को समर्पित करने हेतु उन्मादित। सर्व समर्पण को व्याकुल ,अपने प्रियतम रसराज रसिक शेखर की प्रत्येक रस लालसा को पूर्ण करने का आह्लाद।

  निरन्तर प्रियतम प्रियतम पुकारते हुए बढ़ती ही जा रही प्रियतम की ओर। रसराज का आमंत्रण सुनाने हेतु ही यह वेणु नाद । इसी वेणु नाद के सौरभ से प्रत्येक पुष्प बिखरता जा रहा , सुगन्ध घोलता जा रहा अपने युगल के रस आमंत्रण में न्योछावर होने को। मधुर पवन भी प्रेम उन्माद को बढ़ा रही है , पक्षियों का यह कलरव । आह !! मधुर मधुर संगीत लहरियाँ ध्वनित हो रही सभी दिशाओं में। वेणु नाद का प्रत्येक रव सम्पूर्ण रस वृष्टि , रस तृप्ति, रस तृषा को प्रकट करता हुआ , निरन्तर वर्धित करता हुआ जैसे सम्पूर्ण दिशाओं में सुना रहा अपने रसराज का यह रस आमंत्रण । युगल के पूर्ण सुख, पूर्ण तृषा , पूर्ण तृप्ति, पूर्ण लालसा , पूर्ण अतृप्ति ।आह !! यह मधुर मधुर *आमंत्रण*

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