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अतन रंग कौ झूमका , संगिनी जू

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*अतन रंग कौ झूमका*

"भुजंग सम लिपटै रहै
गह्वर सघन कुंजन में
हिंडोरेब सुखद झूले दोऊ
सखि फूलन की सेज तें
फूलनि की वर्षा कर ठाड़िं
नेह अति गहरौ सुखद सेज सुखकारि
प्रीत गई हार सखी...फूल फूलनि एक ह्वै ना हारि"
कैसे बरनूं यांकि छबि,छबि अतिरस अति अनियारि...आज भोर की सेज का वर्णन नाए हो रह्यौ सखि...तू हँसै है री और मोय चटपटी लागि...किस विध तोहै समझाऊं री नागरि...
'फूलों की अनवरत वर्षा तले फूलन की सेज सखि
फूल फूलनि नेह रस प्रीति अति गाढ़ि
पिय मन जोहत प्यारि,प्यारि मुख मथत रति बाढ़ि
सुरति रंग सौं रंगै दोऊ,एकहु रस वयस सौं हारि'
अहा...
नीलकंवल में पीत पराग और दोऊ की प्रीत का रंग लाल मकरंद सम...सखी...नीली पंखुरियाँ मकरंद में रसमग्न कि अतिनेह में पराग को हिय सम भींज लेतीं भीतर समेट लेतीं जैसे देह में हृदय होत है ना री...ऐसे पीत पराग कौ भींज रह्यौ नीलकंवल पर यांकि महक सौं भींजे भींजे भी रतिरस बढ़ रह्यौ...नव...नव है रह्यौ...
सखी...प्यारी की तनिक सी भृकुटि मरोड़न तें पिय हिय अकुलावै और ज्यौं ही प्यारि अकुलाए प्रियतम कू नेक सौं दृष्टिकोर सौं रसनहुं तें निरखै ना तो प्रियतम तो सगरी प्रिया ही जीत जावै त्यौं हंसि कै अंक लगावै...खोस लेवै प्यारि हिय की मुस्कन...सरक सरक कै प्यारि के नयनन के पिंजरे सौं छूट चरनन तें कर टिकावै...प्यारि जब ताईं पिय मनहुं तें बतियावे ना सखी...प्रियतम चरनन तें निकस निकस...आह... ... ...
"चितवन प्यारी बिधु बदन ओर।पिय पान करत लोचन चकोर।।
पुनि नाभि निरखि नागर गंभीर।अति ब्याकुल ह्वै बैठे अधीर।।
पुनि निबिबंद अवलंब स्याम।सखि बचन रचन रिझवत सकाम।।
आतुर चातुर अति बड़ विनोद।सखि रहसि बहसि मन मदन मोद।।
दोउ टाहि रहे दृग दृष्टि जोरि।छोरत छबि कर छंद बंद निहोरि।।
सुख आलिंगन चुंबन मिलाप।कूजित कोकिल कोमल अलाप।।
हार टूटि कल बलय फूटि।गये कसन कंचुकी चिकुर छूटि।।
आली बाली बर विमल वारि।सेवति सींचति सुख मुख निहारि।।
दोउ सकत न बिबस बसन सँभारि।श्रीबिहारनिदासि हँसि हँसि सिंगारि।।"
अहा...सखी री...जे चित्तचोर मानिनि प्रिया सौं किंचित सौं रुख पाए के ही यांकि सरस सहज रसझाँकी कू नयनन में भरि भरि ढुरकै री और प्रियतमा तो अति भोरि रीझि रीझि याते हिय कौ सिंगार होइ जावै...
अतिहि प्यारि सुरतांत सेज ते सखिगण प्रेम पुहुप वर्षन करि रही सखी...और जे रसभृंग अनतराग से डसै डूबे दोऊ लपट झपट रहै भुजंग सम...सयंमहीन पूर्ण रात्रि अकुलायै रहै पर भोर कौ भी भान ना रह्वै...याते प्रीति भी हार जावै पर रसीलै जुगल एकमेक होय ना अघावैं...प्रति लोम सौं लोम मिलि जावै तबहि भी अबहिं और अबहिं और के तांई अकुलावैं री...सुंदर स्याम संग सुघर सलोनी राधिका सगरो मान लाज लुटाइ देवै और कामिनि रसकाम तन कौ हार होइ जावै...और भोर भई ते केवल ओस की बूँदन पंखुरियों पर सजीं जैसे श्रम जलकण...प्यारि रस मकरंद सजा उन पर...अहा...
यांकि छबि तें जे सौरभ... ... ... कस्तूरी चंदन कौ मर्दन मथन सौं रसगंध घुल मिल गयो री...सखी फूलनि की सेज ते फूल फूलनि फूल रहै...फूलनि की वर्षा में फूल फूलेल भींज रहै... ... ...
ए री...का भई री...सुन रही है ना...नाए...ए री का हुयो...अच्छो !!जे बात...
पहले तो हँसै है अब खोए रही...तब मोय चटपटी रही...अब गुदगुदी...अहा...!!साँचि प्रीति की जे साँचि अटपट री... ... ...
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी!!
श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रीहरिदास!!
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Shri haridas 

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