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विनीता प्यारी विनीता जू , संगिनी जू

"चलौ सखी कुंजबिहारी सौं चित दै मिलि देखैं उनकी भाँवती।
सुंदर सौं सुंदरि मिलि खेलत कैसैं धौं गाँवती।।
औचक आइ परी सखी तहाँ पिय पै पाँइ चँपाँवती।
श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा सौं पौढ़ी तन मन राँवती।।"
अहा री...जे रंगीली जू की रसीली सखियाँ...हाय...किंचित प्यारी कौ प्यारे के नयनों से निहारैं हैं री...अहा...
जानै है सखी...जे प्यारी जू की विनीत करुनाभरी निगाहें जब पियहिय पर गिरें हैं ना री तो प्यारे के नयनों में नयनाभिराम प्यारी जू की सरसीली अद्भुत झाँकी बनै है जांकि निहारन की निहारन से सखियाँ स्यामसुंदर के हिय की बात पढ़ लेवैं हैं जो वास्तव में प्यारी कौ मन की बात ही ह्वै री...बाँच देवैं मधुर संगीत लहरियों में...
किंचित पेचीदा लागै ना जे विनीतहृदया प्यारी दुलारी श्यामा जु की प्यारी अनियारी नयनों की नयनाभिराम रसझाँकियों की सिरमौर सखियन कौ हिय...हाय...तनिक सरल कर कहूँ तो प्यारी कौ हिय में का जे सखियन सौं बेहतर कौ न जानैं री और जे सखियन के हिय की रसलालसा सेवापिपासा स्यामसुंदर ही जानै सो सगरी लीला जांके तांई जांके हिय सौं ही निखरै सुलगै और परिपूर्ण होवै री और प्यारी सुकुमारी तो अति भोरि रसचकोरी जो ऐसी तत्सुखिया के अपने हिय की न जानै री...हियपिय की रसीली भावलहरियों के अनंत उतार चढ़ाव में बस विनीता बह जावै री...
निरख तो...प्यारी जू कौ वेणी सिंगार धराए रहीं चतुर सखियाँ और दर्पण तो जैसे प्यारे के क्षुधित नेत्र ही भए...डूबे जावैं प्यारी की लाज से झुकीं पलकों के तले अखियन के रससमुद्र में और पल पल सिहर जावैं जाके रसपल्लव प्यारी की मधुर उधर थिरकन से मृदु मुस्कनिया तें...अहा...
चतुर सखियन ने भाँप लियो का चाह्वै है जे प्यारी जू...काहे आजु केस नाए संभल रहै यांतै...हाय...जे बँधानो ही ना चाह्वै री...चूँकि जे केस तो स्यामल स्यामल भुजंग सम जाकी रसदेह पर लिपट लिपट कर स्पंदित कर रहै ना...प्यारे कू लागै जे केस मैं होतो और प्यारी तें मान रही जे केस प्यारे ही हैं री... ... ...
चतुर सखियन ने पियप्यारी की ऐसी भावरसनावली पर डोल झूलत की तानें छेड़दीं...अरी...रसबर्धन हेत री...
प्यारे तें तो रहूयौ ना जावै और लपक कै सखिन कै हाथन सौं वेणी सेवा लेने की प्यारी गुहार ही कर दी...अब प्यारी जू जो चाह्वै सोई सोई प्यारो करै ना और प्यारी जू के सुख तांई सखियन रीझि रीझि ना अघावै...प्यारी के विनीत नयनों की किंचित भृकुटि मटकन से सखीगन समझ गईं और सगरी हट गईं जां तें...
सगरी बड़ी चतुराई तें बैठीं बस निरख रहीं प्यारे प्यारी कू के कैसे कैसे प्रियतम विनीता श्यामा जू सौं सगरी सेवासुख पावै है री...
केस सँवारनौ तो दूर भयौ जांके हिय तें प्रतिपल नयौ भाव उभरै है री...
वेणी तो एक बहानो है री...नवलकिसोर नवलकिसोरी एकहु पल ना बिताए सकैं एक दूजे तें नयनकोर जितनी भी दूरी न सही जावै री...
"बात तौ कहत कहि गई अब कठिन परी बिहारी।
प्रान तौ नाहिंनै तन अस्तविस्त भये कहै कहा प्यारी।।
भाँवते की प्रकृति देखत जू श्रम भयौ बहुत हिया री।
श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा बाहु सौं बाहु मिलाय रहे मुख निहारी।।"
अहा...चतुरसिरोमनि नागर की चतुर रंगीली सखियन और जांके नेह तें ढुरकि ढुरकि नित्य नवकिसोरी प्रियतम चित्तनैंन निहोरी विनीता श्यामा जू...अहा...
सखी...जे प्यारी की विनीत उदारता कौ का बखानूं री...जे तो अति भोरि सखियन के हियकंवलन रसभावन की कठपुतरी सी होय कै प्रियतम स्यामसुंदर कौ सुख देवै है री...
तनिक इन अभिन्न सखियन के हिय की गतिविधियों कौ तो निरख...जांकै नयन नयन ना हैं री...जे तो रसभाविनियाँ हैं जो अपनी प्यारी की सुकुमारता तें बलिहारि जावैं नित नित...
इनके नयनों में प्यारी प्यारे का सुख सो प्यारी इनको सुख देवै हैं री...जो जिस भावना तें निरखै प्रीतमप्यारी कू स्यामसुंदर वैसी सेवा करै प्यारी की और प्यारी वांकी हर सखीसरूप सेवा कौ हिय तें स्वीकारै...
एक सखी स्यामसुंदर सौं वेणी गुंथन सेवा करानो च्हावै तो प्रियतम प्यारी की उदारतावश वेणी को कुसुमों से सजावै...
वेणी हू कौ श्यामसुंदर निहारै प्यारी की तो जे वेणी ह्वै जावै...
तनिक और गहरो निहारै तें जे वेणी भुजंग सम प्यारी के सुकोमल गौरांग अंग सुअंगों का सिंगार होइ जावै...अहा...
प्यारी जू के सिंगार मधुर भी वेणी सेवन कौ सुख ऐसो के विनीत किसोरी के चरणकमलों को छूती जे वेणी पियहिय की स्यामल करावलियों सी चरणों से ही लिपट जावै...
ए री सखी...जे हमारी प्यारी की विनीतहृदयता कि प्यारी स्वतः सखियन के हर अति सुकोमल भाव में उतर सुख प्यारे कौ ही देवै री...सखियन कै हियकंवलों पर प्रफुल्लित सफ्फुरित होते एक एक गहरे रसभावन की विनीत पूर्णा श्रीश्यामा जू...
सखियन कै हिय भावन सौं प्यारी जू अरबराए कामविदग्ध मनमोहन कौ हिय सौं लिपटाए लेवै और यांके नयनों से बड़ी मधुरता मृदुता से हिय में उतर जावै...अहा... ... ...
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रीहरिदास !!

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