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इस रूह के छालों को अब तुमसे , अमिता दीदी

इस रूह के छालों को अब तुमसे छिपाना है
मुझमें ही रहे दर्द मेरा नहीं किसी को बताना है

दिल भर गया है मेरा ज़माने से अब साहिब
दर्द ही देता है ये बेदर्द ज़माना है
इस रूह के छालों ........

रोती है कलम मेरी हाय दर्द लिखूँ कैसे
बहता है जो आँखों से दिल से पी जाना है
इस रूह के छालों........

है बता और कौन मेरा बस इक उम्मीद तेरी
सब छोड़ दिए सहारे तेरा दर ही ठिकाना है
इस रूह के छालों ........

चलो ऐसे करती हूँ तेरे सामने भी नहीं आऊँ
इन आँखों से बहते अश्क़ भी नहीं तुमको दिखाना है
इस रूह के छालों ........

अब खामोश ही कर दो ना मेरे रोते हुए लफ़्ज़ों को
देखो मेरी दिल्लगी पर हँसता ये ज़माना है
इस रूह के छालों ........

क्यों बार बार दिल को फिर चोट सी लगती है
नाज़ुक सा जो दिल है पत्थर का बनाना है
इस रूह के छालों........

गर तुमको हो मोहबत नज़र इतनी मुझपर करदो
थोड़े और अश्क़ दे दो जो इश्क़ का नज़राना है
इस रूह के छालों को........

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