श्री बंशीवट महारासलीला स्थली, वृन्दावन....
"वृंदावन सो वन नहीं, नन्दगाँव सो गाँव, बंशीवट सो वट नहीं, श्रीकृष्ण नाम सो नाम"
पुष्टिमार्ग संप्रदाय के संस्थापक आचार्य श्रीमद् वल्लभाचार्य महाप्रभुजी जब वृन्दावन पधारे थे तब महाप्रभुजी ने बंशीवट में श्रीमद् भागवत् कथा का पारायण किया था।
आपश्री की ८४ बैठक में से चतुर्थ बैठक बंशीवट में बिराजित है।
कुछ लोग ऐसा कहते है की श्री वल्लभ महाप्रभु को श्रीनाथजी के प्रथम दर्शन बंशीवट में हुए थे।
श्रीमद् वल्लभाचार्य महाप्रभुजी के शिष्य सूरदासजी, कुम्भनदासजी, नन्ददासजी साधना के हेतु से बंशीवट पधारे थे, मीराबाई जी भी इस स्थान पर पधारी थी।
बंशीवट गौड़ीय वैष्णवों के लिए भी महत्वपूर्ण स्थान है, जब श्री चैतन्य महाप्रभु वृन्दावन पधारे थे, तब सबसे पहले वह बंशीवट गए थे।
श्री चैतन्य महाप्रभु ने बंशीवट में साधना की थी तथा वृन्दावन से वापिस लौटने के वक्त उन्होंने यह स्थान पर रहने का आदेश अपने शिष्य मधुपंडित गोस्वामी तथा परमानंद गोस्वामी को दिया था।
एक बार मधुपंडित गोस्वामी इस स्थान पर खुदाई कर रहे थे, तब किसी वृक्ष के मूल में उन्हें बंशी के दर्शन हुए।
इसलिए उन्होंने उस स्थान पर ज्यादा खुदाई की तो वहां से श्री श्री राधा गोपीनाथजी के विग्रह प्रकट हुए, किन्तु दुर्भाग्यवशात औरंगजेब के समय में श्री श्री राधा गोपीनाथजी को जयपुर पधराया गया और तब से वह जयपुर, राजस्थान में सेवित है।
परमानंद गोस्वामी ने भी बंशीवट में साधना की तथा श्री श्री राधा रासबिहारीजी विग्रह को स्थापित किया, तब से काफी सिद्ध पुरुष अपनी साधना के हेतु से इस स्थान पर पधारते है।
१५ वी सदी में श्री निम्बार्क संप्रदाय के एक ऋषि श्री घमंडदेव आचार्य हो गए, वह गोवर्धन के पास कह्माई गाँव में रहते थे।
वह श्री श्री राधा कृष्ण की रासलीला के बारे में सोचने लगे, जब वह बंशीवट पधारे तब श्री श्री राधा रासबिहारीजी ने अपना मुकुट उन्हें दिया था।
१८२० में एक महान वैष्णव श्री गिरधारी शरण देव आचार्य ने श्री श्री राधारासबिहारी की सेवा अपने हस्तक ली।
वह श्री श्री राधा रासबिहारीजी की बहुत भावपूर्ण सेवा करते थे।
श्री श्री राधा रासबिहारीजी की कृपा से उन्हें युगल स्वरुप के चरण पादुका मिले, वह चरण पादुका आज भी वहाँ के महंत द्वारा सेवित है।
"आज गोपाल लिए ब्रिजबाल रास रच्यो बंशीवट छैया"
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