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श्री जी के कर में मेहँदी , अमिता दीदी भाव

आज बाँवरी बहुत उदास है और कान्हा को बहुत उलाहने दिए जा रही है। कान्हा को जाने क्या क्या बोल रही है परन्तु कान्हा सुन सुन मुस्कुरा रहे हैं। ये देख बाँवरी और और उलाहने देने लगती है। कान्हा से पूछती है कान्हा जू तुमको तनिक भी क्रोध नहीं हुआ मेरी बातों से ,तुम तो आनंदमग्न हुए जा रहे हो। कान्हा बोले तू कुछ दे ही तो रही है मुझसे तो सब मांगने वाले ही मिलते हैं तेरे उलाहने भी मुझे मीठे लगते हैं। मीठे कैसे ? मैंने तो सब क्रोध में भर भर दिए तुमको। अरी बाँवरी ! ये मीठे नहीं होते तो मैं क्या इतने आनंद से लेता इनको। कान्हा तुम बातें ही बनाते हो और बातों से ही प्रसन्न हो जाते हो। मुझे तो प्रसन्नता मेरी लाडली जू की सेवा में ही मिलती है। अरी बाँवरी ! मैं और तेरी लाडली जू कोई अलग थोड़े ही हैं । मैं प्रसन्न हूँ तो वो भी प्रसन्न होंगी। नहीं कान्हा मुझे तो प्रसन्नता तभी होगी यदि मुझे श्री जू की सेवा मिले । और आप भी तो प्यारी जू की सेवा को कितने लालयित रहते हो। जो भी सखी कोई सेवा में आती है तुम हर कहीं पहुंच जाते हो। ये जो सेवा का आनंद तुम लेते हो ये हमें भी तो लेना है। अच्छा तुम मुझे श्री जू की दासी नहीं समझते । तभी मुझे उनकी कोई सेवा नहीं करने देते। नहीं नहीं बाँवरी तू तो सखी है हमारी। ये सुन बाँवरी जोर जोर से रोने लगती है। तभी कान्हा अपने पीताम्बर से बहुत सुंदर लाल रंग की चूड़ियाँ निकलते हैँ और उसे कहते हैं ये जाकर लाडली जू को पहना दे बहुत प्रसन्न होंगी वो। उनके मेहँदी रचे हाथों में ये चूड़ियाँ कितनी सुंदर लगेंगी। कान्हा ये चूड़ियाँ आप ही पहनाओ श्री जू को । मैं उनको मेहँदी लगाती हूँ जाकर।

   सखी श्री जू के सन्मुख तूलिका और मेहँदी लेकर पहुंचती हैं। हाय ! आज मेरे कितने भाग्य खुल गए मुझे श्री जू के हाथों में मेहँदी लगानी है। श्री जू मैं तो आपके चरणों में रहने योग्य भी नहीं आपके कोमल हाथों को स्पर्श कैसे कर सकूँगी। ये सोच ही उसकी आँखों से अश्रु प्रवाहित होने लगते है। अपनी कृपालु स्वामिनी के कोमल हाथ भी छूने से उसे डर लगता है। हाय मेरी लाडली जू को मेरे कठोर हाथों के स्पर्श से कहीं कष्ट नहीं हो। श्री जू के सन्मुख होते ही ना जाने क्यों आँखों से अश्रु रुकते ही नहीं हैं। श्री जू हँसकर कहती हैं तू सच में बाँवरी है कान्हा ठीक कहते हैं। चलो अब मेहँदी तो लगाओ। सखी सोचती है आज श्री जू के हाथ में राधा मोहन दोनों का ही चित्र बनाती हूँ । मेरी स्वामिनी जू देख देख कितना प्रसन्न होंगीं। तूलिका उठा काँपते हुए हाथों से मेहँदी लगाने लगती है । शीघ्र ही स्वयम् को सम्भाल लेती है यदि मेरी स्थिति यूँ ही रही तो सेवा में व्यवधान हो जायेगा। श्री जू के दोनों हाथों में युगल चित्र बना देती है। स्वामिनी जू मेहँदी में कान्हा और राधा को संग देख देख आनन्दित होती हैँ। कुछ देर पश्चात कान्हा वही चूड़ियाँ लेकर आते हैं और श्री जू को अपने हाथ से पहनाते हैं। श्री जू और कान्हा को प्रसन्न देखना ही सखी के जीवन की सार्थकता है।

जय जय श्यामाश्याम

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