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साँवरे बिताए न बीते , संगिनी

साँवरे बिताए न बीते
लम्हे ये इंतज़ार के
प्यासे हुए नैन मेरे
तेरे दीदार के
तेरी चाहत का सुरूर
रग रग में मेरी है बसा
दीवाने यूँ हुए
हम कृष्ण तेरे नाम के

तुम बिन ना कटे बैरन रतियां
पल पल दिन रैन
करूँ तेरी बतियाँ
पढ़ लो गर फुर्सत हो
लिख लिख हारी पी प्रेमपत्तियाँ
तुम ना आए
तुम्हारी याद ना जाए
अखियों के द्वार से
भीतर अधररस घोलें
लफ्जों पर भी पड़े हैं ताले
अद्भुत प्रेम गहरे मिलन वाले
अब कहना क्या
चाहना क्या
बेचैन हृदय की मूक वीणा
पड़ी थी जो अब भी खामोश है
तुम ने छू कर बजाया जो
हर पल तरंगायित है
सहेज कर रख लिए
तारों के सपंदन सारे
तुम अब भरे हो
जुदा रहो मुझसे चाहे
दूरी नहीं अब कैसी भी
घुल कर यूँ मेरे हो बैठे
निःसपंद हुआ सब
बाहरी आवरण उतर गए
रोम रोम तुम हो
रग रग की सिरहन
निष्प्राण देह में
आत्मिक सहज रूहानी
नित्य मिलन हो जैसे

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