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🌹❤रसराज राधा-रासबिहारी लाल❤🌹
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अंग-अंग शोभा देखी, कृष्ण संग राधिका,
निकुंज भवन माहि, सखी युगल चरण आराधिका।
एक संग वर्णन असम्भव, लली और लाल की,
कोटि-कोटि सौंदर्य फूटे, एक-एक अंग से कमाल की।
🍁🍁🍁लली-लालजु-सौंदर्य🍁🍁🍁
ललित लवँग लतिका सी है लचीली बाल ,
ऎसी जानि नेकु सक चित्त मैँ न दीजिये ।
भौँरन के भार सोँ नमत मँजरी न नेक ,
याही को उदाहरन मन गुनि लीजिये ।
जकरि भुजान सोँ इकन्त परयँक पर ,
लपटि अनँद सोँ अमँद रस पीजिये ।
मानि मेरी सीख तजौ मन को सँदेह ऎसो ,
नेनू सी नरम नारि कैसे रति कीजिये ।
कुँद की कली सी दँत पाँति कौमुदी सी दीसी ,
बिच बिच मीसी रेख अमीसी गरकि जात ।
बीरी त्योँ रची सी बिरची सी लखै तिरछी सी ,
रीसी अँखियाँ वै सफरी सी त्योँ फरकि जात ।
रस की नदी सी दयानिधि की न दीसी थाह ,
चकित अरी सी रति डरी सी सरकि जात ।
फँद मे फँसी सी भरि भुज मे कसी सी जाकी ,
सी सी करिबे मे सुधा सीसी सी ढरकि जात ।
कान्ह की बाँकी चितौनि चुभी झुकि ,
काल्हि झाँकी है ग्वालि गवाछनि ।
देखी है नोखी सी चोखी सी कोरिन ,
ओछे फिरै उभरे चित जाछनि।
मारेइ जाति निहारै मुबारक यै ,
सहजै कजरारे मृगाछनि ।
सीँक लै काजर दे री गँवारिनि ,
आँगुरी तेरी कटैगी कटाछनि ।
आधे चंद्रमा के रूप ढाके केश घटा कैंधौँ ,
गगना के नाके विधु आठवीँ कला के हैँ ।
कैँधौँ काम देवता के कनक बटा के रूप ,
औँधा के धरे हैँ हेतु ससि को सुधा के हैँ ।
कैँधौँ एक छत्र ताके छत्र छविता के छीने ,
नासिका के दँड बाँके गुन बिधिना के हैँ ।
कैँधौँ नाथ भाग्य ताके भाजन भरे धरे हैँ ।
चँदमयी चम्पक जराव जरकस मयी ,
आवत ही गैल वाके कमलमयी भई ।
सखियाँ संग युगल को आनँद बिनोदमयी ,
लालरँग मयी भयी बसुधा मई ,
ऎसी बनि बानिक सोँ मोहन छकाई ,
रसकहि की निकाई लखि लगन लगी नई ।
नेह को हितै करि गोपाल मोह दैकरि ,
सखीन दुचितै करि चितै करि चली गई ।
लली-लाल बच गए, एकांत रास-नृत्य करिए,
बाँहों में बाँह डाल, नयन चारों जोरिए।
लटकी लरक पर भौँह की फरक पर ,
नैन की ढरक पर भरि भरि ढारिए ।
हीरे के से अमल कपोल विँहसन पर
छाती उसरन पर निसँक पसारिए ।
गहरौही गति पर गहरौही नाभि पर ,
हौँ ना हटिकति प्यारे नैसुक निहारिए ।
एक प्रान प्यारीजू की कटि लचकीली पर ,
ढीली ढीली नजर संभारे लाल डारिए ।
छम-छम, झन-झन, बिछुआ, झाँझर संग पैंजनी बजती,
सोलह कला नभ चंद्र लिए, सौंदर्य युगल समक्ष फीकी पड़ती।
सरकै अंग अँग अथै गति सी मिसि की रिसकी सिसिकी भरती ।
करि हूँ हूँ हहा हमसों हरिसों कै कका की सों मो करको धरती ।
मुख नाक सिकोरि सिकोरति भौँहनि तोष तबै चित को हरती ।
चुरिया पहिरावत पेखिये लाल तौ बाल निहाल हमै करती ।
अब रूप-रासि सहे न बने, एक हृदय❤टूक-टूक 💘भए,
एक-एक हिय-टूक माहि, इक-इक युगल अनेक भए।
नैना को विश्वास नहीं, दोऊ नयन शोभा निरख बस मूक भए,
भक्ति-वैराग सबमें प्रवेश भई, निर्खत जीवात्म, सब देवशुक भए।
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