कान्हा और मित्र मण्डली
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एक बार कान्हा जू का प्यारा सखा मधुमंगल उनसे रुष्ट हो जाता है। उनसे कहता है कान्हा तुम सब सखाओं से प्रेम करते हो और उनको सब मिष्ठान खिला देते हो। मेरा तो तुम ध्यान ही नहीं रखते। मुझे लड्डू भी नहीं दिए। मैं एक निर्धन ब्राह्मण हूँ न इसलिए तुम मुझसे इतना स्नेह नहीं रखते। अब कान्हा जू तो सखाओं के सखा हैं उनका कोई सखा उनसे रुष्ट हो जाये ये तो उनको कभी स्वीकार ही नहीं। मित्र मण्डली में प्रेम बढ़ाने हेतु लीला चलती रहती है।
मधुमंगल अत्यधिक रुष्ट हो जाते हैं। उनके हृदय में अपने सखा के प्रति अत्यधिक प्रेम उमड़ता है तो उसे छिपाने हेतु वो झूठमूठ में अपने सखा से झगड़ते हैं। कान्हा तुमने मुझे लड्डू भी नहीं दिया देखो सभी मित्र सुमंगल ,श्री दामा सब मुझे चिढ़ा रहे हैं। सभी मित्रों को लड्डू खिलाये हो और मेरी बारी सब खत्म। अभी कान्हा अपने मित्र को आँख बन्द करने को कहते हैँ। मधुमंगल जानता है ऐसे तो कभी हो नहीं सकता कान्हा मुझे भूल जाएँ और मेरे लिए लड्डू नहीं रखें । अवशय ही इन्होंने अपने पीताम्बर में छिपा रखा है। इधर नटखट कान्हा को जाने क्या शरारत सूझती है मधुमंगल के मुख में मिर्ची डाल देते हैं । सभी सखा ताली बजाकर हंसने लगते हैं। मधुमंगल रुष्ट हो जाते हैं और दूर भाग जाते हैँ।
कान्हा अपने मित्र को मनाने उसके पीछे जाते हैँ। मधुमंगल का प्रेम से आलिंगन करके उसके मुख में लड्डू डाल देते हैँ। कान्हा ने उसके लिए इतने लड्डू छिपा रखे जितने वो सोच भी नहीं सकता। कान्हा चाहते हैँ कि सब सखाओं में से मधुमंगल को सबसे अधिक लड्डू खाने को मिलें । मधुमंगल के मुख में इतने लड्डू डालते हैँ कि खाते खाते उसका पेट दुखने लगता है। मधुमंगल अपने सखा पर बहुत प्रसन्न होता है। दोनों सखा मित्र मण्डली में लौट आते हैँ।
अभी नटखट कान्हा को और शरारत सूझती है। सब मित्र मण्डली की गईयां पास में ही होती हैँ। कान्हा मधुमंगल की दो गाय जो सभी गईयां के साथ वन में चरने गयी हैँ उनको बांध देते हैँ। संध्या को लौटते समय सभी अपनी अपनी गईयां लेकर चलने लगते हैँ परन्तु मधुमंगल की दो गईयां खो जाती हैँ।
मधुमंगल अपनी गईयां को खूब पुकारते । नित्य तो सभी गईयां शीघ्र लौट आती हैँ। उनको मधुमंगल के साथ खड़े कान्हा का स्पर्श पाना है जिसके लिए वो सदा लालायित रहती है।परन्तु आज वो लौट ही नहीं रही। मधुमंगल दौड़ने लगते है। खूब दौड़ लगती है पुकारते पुकारते। कुछ समय पश्चात मधुमंगल को अपनी गईयां वृक्ष से बन्धी मिल जाती हैँ। निश्चित ही किसी सखा की शरारत है। कान्हा मधुमंगल की प्रतीक्षा करते हैँ। थके और भूख से पीड़ित मधुमंगल गईयां के साथ लौट आते हैँ। कान्हा अब मुझसे और नहीं चला जायेगा। भूख से मेरा बुरा हाल हो रहा है। कान्हा हंसते हैँ अरे पेटू अभी तो तुमने इतने लड्डू खाये तुम्हारा पेट दुःख रहा था। पुनः तुमको भूख लग आई। मैं जानता था तुमको भूख सताएगी देखो मैंने तुम्हारे लिए लड्डू बचा कर रखे हैँ। मधुमंगल लड्डू खाकर कान्हा का आलिंगन करते हैँ और अपने सखा के प्रेम में विभोर हो जाते हैँ।
जय जय श्री राधे
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