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युगल की विचित्र स्थिति , अमिता दीदी

युगल की विचित्र स्थिति
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कान्हा एक वृक्ष के नीचे बैठे हैं। उनके हाथ में श्री जू का एक चित्र है। उनके मुख पर कोई भाव नहीं है केवल टिकटिकी लगाए चित्र को निहार रहे हैँ। कुछ समय पश्चात चित्र को हृदय से लगा लेते हैँ। एक सखी उनको बहुत समय से इस स्थिति में देख रही है परन्तु वह कान्हा के हृदय में उठ रहे भाव अनुभव ही नहीं कर पा रही। क्या कान्हा अति प्रसन्न हैं या विरह में व्याकुल हैँ। मुख पर कोई भाव नहीं है केवल उस चित्र को निहारते हैँ और पुनः पुनः हृदय से लगा लेते हैँ।

   कुछ समय पश्चात कान्हा उस सखी का हाथ पकड़ते हैँ और कहते हैँ  प्रियतमे ! राधे ! क्या मैं तुम्हारे प्रेम के योग्य हूँ। तुम मुझसे इतना प्रेम करती हो । मैं तो तुम्हारे चरणों का दास हूँ तुम्हारा ऋणी हूँ सदैव। कभी सोचता हूँ तुम मुझसे कितना स्नेह करती हो और मैं स्वयम् को तुम्हारे प्रेम के लिए अयोग्य पाता हूँ। उस चित्र को निहारते निहारते कान्हा जू की मनोदशा ऐसी हो चुकी है कि उस सखी में भी उनको राधा ही प्रतीत हो रही है। सखी कान्हा की बात सुनकर प्रसन्न होने लगती है ।

   तभी उस वृक्ष से कुछ दूरी पर एक और वृक्ष की ओट से श्री प्रिया जू कान्हा की इस स्थिति को देखती है। वो देखती है कि कान्हा उस सखी को राधा राधा पुकारते हैँ ,प्रिया जू भी उस सखी को राधा समझने लगती है और स्वयम् को कान्हा मान बैठती है । तभी कान्हा पुनः उस चित्र को निहारने लगते हैँ और वो सखी श्री प्रिया जू के पास पहुंचती है। इधर प्रिया जू की दशा भी विचित्र सी है वो भी उस सखी को राधा मान उसका हाथ पकड़ लेती है। प्रिया जू स्वयम् को कान्हा मान चुकी है और उस सखी को कहने लगती हैँ प्रियतमे ! राधे ! तुम मुझसे कितना प्रेम करती हो .........................। अभी सखी उन दोनों को इस दशा में देख चकराने लगती है। ये आज क्या हो रहा है न केवल कान्हा उसे प्रिया जू मान बैठे बल्कि प्रिया जू स्वयम् को कान्हा और उसे राधा मान बैठी हैँ।

   सखी पुनः पुनः एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष की और जाती हैँ और देखती हैँ की युगल की मनोदशा एक सी हो चुकी है। जो अभी कुछ देर पहले कान्हा के मुख से सुना वही अभी प्रिया जू पुनः कह रही हैँ। सखी बहुत देर उन्हें देखती रहती है। तभी उसके मन में एक विचार आता है। वह कान्हा के पास जाकर कहने लगती है मुरली मनोहर क्या अपनी प्रियतमा अपनी राधा को बांसुरी नहीं सुनाओगे आज। कान्हा तुरन्त बांसुरी निकालते हैँ और ऑंखें बन्द कर बजाने लगते हैँ।

   जैसे ही कान्हा बांसुरी बजाना आरम्भ करते हैं उनकी बांसुरी राधा राधा ........ही पुकारती है। इधर प्रिया जू के कानों में बांसुरी की ध्वनि पड़ती है धीरे धीरे वह अपनी भाव दशा से बाहर आती हैँ और उन्हें प्रतीत होता है कि कान्हा बांसुरी बजा उसे पुकार रहे हैँ। तुरन्त खड़ी होती हैँ और उस वृक्ष की और भागती हैँ। कान्हा से लिपट जाती हैँ। कान्हा आँखें खोल प्रिया जू को अपने हृदय से लगा लेते हैँ और वो सखी युगल के मिलने से अति प्रसन्न होती है।

  इस अद्भुत प्रेम की जय हो । एक और कान्हा को हर सखी में प्रिया जू प्रतीत हो रही है वही दूसरी और श्री राधा उनके प्रेम में डूबी स्वयम् को कान्हा ही मान बैठी हैँ। इस दिव्य ,अनन्त ,पूर्ण ,महाप्रेम की जय हो।

  जय जय श्री राधे

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