*विदग्धमाधवे* "गुन की बात राधे तेरे आगे को जानैं जो जान सो कछु उनहारि। नृत्य गीत ताल भदेनि के विभदे जानें कहूँ जिते किते देखे झारि।। तत्व सुद्ध स्वरूप रेख परमान जे विज्ञ सुघ...
"राधे चलि री हरी बोलत कोकिला अलापत सुर देत पंछी राग बन्यौ। जहाँ मोर काछ बाँधै नृत्य करत मेघ मदृंग बजावत बंधान गन्यौ।। प्रकृति के कोऊ नाहिं यातें सुरति के उनमान गहि हौं आई म...
*आमंत्रण* प्रियतम रसराज रसिक शेखर ने अपना वेणु नाद छेड़ दिया है। प्रियतम के हृदय की रस तृषाएँ, रस लालसाएं । आह !! वेणु रव में पिरो दी हों जैसे। अधरसुधा का वह आमंत्रण !! स्वतः ही प्य...