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Showing posts from January, 2018

विदग्धमाधवे प्यारी 1 , संगिनी जू

*विदग्धमाधवे* "गुन की बात राधे तेरे आगे को जानैं जो जान सो कछु उनहारि। नृत्य गीत ताल भदेनि के विभदे जानें कहूँ जिते किते देखे झारि।। तत्व सुद्ध स्वरूप रेख परमान जे विज्ञ सुघ...

विदग्धमाधवे प्यारी 2, संगिनी जू

"राधे चलि री हरी बोलत कोकिला अलापत सुर देत पंछी राग बन्यौ। जहाँ मोर काछ बाँधै नृत्य करत मेघ मदृंग बजावत बंधान गन्यौ।। प्रकृति के कोऊ नाहिं यातें सुरति के उनमान गहि हौं आई म...

आमंत्रण , बाँवरी जू

*आमंत्रण* प्रियतम रसराज रसिक शेखर ने अपना वेणु नाद छेड़ दिया है। प्रियतम के हृदय की रस तृषाएँ, रस लालसाएं । आह !! वेणु रव में पिरो दी हों जैसे। अधरसुधा का वह आमंत्रण !! स्वतः ही प्य...

प्रीतवर्षण चातकी , संगिनी जू

"प्यारी जू तेरी आँखिन में हौं अपनपौ देखत हौं ऐसे तुम देखति हौ किधौं नाहीं। हौं तोसौं कहौं प्यारे आँखि मूँदि रहौं तौ लाल निकसि कहाँ जाहीं।। मोकौं निकसिवे कौं ठौर बतावौ साँच...

विनीता प्यारी विनीता जू , संगिनी जू

"चलौ सखी कुंजबिहारी सौं चित दै मिलि देखैं उनकी भाँवती। सुंदर सौं सुंदरि मिलि खेलत कैसैं धौं गाँवती।। औचक आइ परी सखी तहाँ पिय पै पाँइ चँपाँवती। श्रीहरिदास के स्वामी स्याम...

विनीता प्यारी , प्यारी जू

"दूलहु दुलहिनि दिन दुलराऊँ। कुमकुम मुख माँडों मँड़वातर नवल निकुंज बसाऊँ।। बिबिध बरन गुहि सुरंग सेहरे रसिकनि सीस बँधाऊँ। कोमल पीठ दीठि करि ईठनि डीठि मिलै बैठाऊँ।। पानि प...