प्रेमी छिप नही पाते
ढिढोरा वो पिटता है जिससे हुआ है
कारण ।।।
प्रेम एक करता है ।
यहां देह कोई भीतर कोई है
होता वही है जो वो चाहते है
केवल प्रेमी के आगे ईश्वर अपनी चलाते है ।
संसार के आगे ।।। तथास्तु ।।।
जैसा तुम चाहो
प्रेमी नहीँ , साधक छिप सकते है
प्रेम हुआ एक हुए ।
अगली स्टेज क्या होगी
वो अगला स्टेप होगी हरी का गान ।
हरी प्रेम का प्रसार । चैतन्य मीरा तुलसी प्रेम रस में लिखे गाये ।।।
और हां उसे केवल वही गा सकता है ।
जिसमे वे उतर जाये । यानी ।।।
ईश्वर ही ईश्वर को कह सकते है । गा सकते है ।
विरह रस बिना युगल प्रेम न हो पायेगा ।।।
युगल का विरह आप की धमनियों को
चिर कर प्रत्येक रोम से रुदन करता है तब ....
हां पर प्रेम फिर भी सस्ती घटना नही ।
प्रेम सम्भल कर चल रहे जीव को होगा ही नही । प्रेम उसे होगा जो बह जाए
प्रेम चाह से नही होता
एक दुर्घटना है
दुर्घटना इसलिए कि सुघटना होती तो
कोई बचता ही नही ।।।
ये दुर्घटना आपको खुद से तोड़ किसी अपरिचित में बसा देती है
देह कही चित कही ...
भीषण वेदना ।।।
चित् जहाँ सम्बन्ध वहां ...
देह पर चित् नही तो
जहाँ चित् गया वही सब भाव
प्रेम दो को एक फिर प्रेमरस हेतु एक को दो करता है ।
आत्मा किसी और पिंजरे में फंसी हो
पर उसे कोई और भा जाये ।।। अपना पिन्जरा पीड़ा दायक हो जाये
प्रेमी चूँकि प्रेमास्पद के रंग रंगा है ।
और प्रेमास्पद प्रेमी के रंग यहाँ दो एक ही देह होंगे । और जो भी लीला है दोनों और की एक ही देह से होती दिखेगी
प्रेमी अगर कोई भी क्रिया कर रहा है आप गौर से देखे वहां कर्ता कोई और होगा ।।। भीतर का प्रेमास्पद
एक बात और ।।।
आप देखेगे प्रेमी जल्दी पिघलते है ।
बुरा भी मान जाते है क्यों ।।।
प्रेम में तो अहंकार नही फिर क्यों ??
प्रेमी को आप कुछ कह दो ।
उसे ही उसके प्रेमास्पद यानि प्यार को नही ।।। उसे ही बुरा कहो तो भी उसे पीड़ा होगी ।।।
कारण ये पीड़ा भीतर के प्रेमास्पद को यानि कान्हा को हुई । व्यक्त करता ये दिख रहा है । कान्हा की निंदा भी शन न होगी क्योंकि प्रेमी से सहा न जायेगा ।।। पर कई बार प्रेमी प्रेमास्पद के विपरीत भी सह लेता है क्यों ?
क्योंकि प्रेमी उस समय निज देह में लघु और प्रेमास्पद (कान्हा)तीव्र होते है | देह प्रेमी की है पर कान्हा जागृत है प्रेमी मगन तो कान्हा को अपनी निंदा की फ़िक्र न होगी ।।।
बाद में जब प्रेमी को होश होगा उसे लगेगा उसने पाप किया । आत्मग्लानि होगी ।
दो का एक होना आसान नही ।।।
पर हुआ तो कभी तुम जिए कभी हम
हम ही हमे जिए तो क्या ख़ाक़ जिए ।
हमे तुम न जिए तो हम क्या बेकार ही जिए
गर फिर तुम जो हमे जिए
तो हम क्यों न तुम्हें जिए ।
पूरे न तुम जिए न पूरे हम जिए
सत्यजीत तृषित
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