रसिली प्रियाजु पद निरख नैन सु
सरस माधुरी मधुरा सुरस पुलक सु
कुन्दारदनी हरि हिय वसनी प्रेम तरंगी
स्वरश्रृंगारनी श्यामाधरधारिणी नवरंगी
अति अलबेलिनी अतिसुकुमारी प्राणपियारी सु
अति प्रियवादिनी अतिरसविस्तारिनी रुप उजारी सु
नैन बिसरे पदकंजन सुकोमलन पर
सुध बिसरे सुनाम धरण अधरन पर
रस पिय हरषे तृषित नैनन सरिस बरसे
पिबत-पिबत छिन-छिन पुनि-पुनि तृषित तरसे
प्रियाजु बस और कछु नाही चाहु जु
युगल छवि चितवन फुलवारी बनाऊं जु
कोटिन पापन करत मन सुपद दरस आस जु
दासिन पर करकंजधरन दृगकोर कृपा करो जु ... सत्यजीत "तृषित"
***
२
भाव निवेदन कर सकुं हिय कृपा सुमधुर पाई मोरी राधे
भाव अश्रुवन सु चरण सेवा नित विनय चाहू मोरी राधे
भाव वंदन-वेदना-विरल चित्त पल-विपल पाऊं मोरी राधे
भाव सहज-सरल श्वसन प्रवाह सु एक नाम होवे मोरी राधे
भाव तृषित हृदय विलाप न आवे रसना वा भावा नु सुनियो मोरी राधे - सत्यजीत "तृषित"
***
३
विनय दरसन पियारी जु को
हिय आस लगावे श्यामा जु को
करि कृपा बरसे रस रसिली जु को
अटारी टहल हरषन हित पियारी जु को
दरसन सुमिरन अतिरस पियारी जु को
युगन की तृषा मिटावे "तृषित" नाम श्री जु को
सत्यजीत "तृषित"
भाव निवेदन कर सकुं हिय कृपा सुमधुर पाई मोरी राधे
भाव अश्रुवन सु चरण सेवा नित विनय चाहू्ं मोरी राधे
भाव वंदन-वेदना-विरल चित्त पल-विपल पाऊं मोरी राधे
भाव सहज-सरल श्वसन प्रवाह सु एक नाम होवे मोरी राधे
भाव तृषित हृदय विलाप न आवे रसना वा भावा नु सुनियो मोरी राधे ... सत्यजीत "तृषित"
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सोचता हूं एक दिन सिर्फ़ आब़ ए निगाह के साहिल में उलझ जाऊं
फक़त बेपनाह समन्दर से घिर उसी में उतर जांऊ
देना तेरी फितरत होती तो आँखे
लम्हा ना सुखती मेरे हमद़म
लेना ग़र मुझे आता तो द़िल से तुम
निकलना पाते मेरे हमद़म ...
तेरी मुहब्बत की तडप रहे तो शिकवा ना हो
ज़न्नत हो पर दर्दे ईश्क़ ना हो तब शिकायते हो
अश्क़ो का कहर बरसाने की तमन्ना हो तो आँखे यें चुनना
सुखे आसमां को बरसाने लगो तो भुल जाना रुकाना
सत्यजीत "तृषित"
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संग पिया अंग पूरी भई मैं तो
लगत हिय से खिल रही मैं तो
हलचल भीतर की जीय मैं तो
मकरंद कंज पंकज छुवत मैं तो
पलक गिरावत नैनन तर रही मैं तो
नीलाम्बर उजरी सी खोवत रही मैं तो
कछु पि पुलके कछु पुलक रही मैं तो
सत्यजीत "तृषित"
***
धुन दूजी काहे सुने मन
जब प्रेम धुन गुंज रही वेणु से
छवि और काहे देखे नैन
जब दोउ दिख रहे कोरन से
गीत और काहे भावे गहन
जब प्रेम गीत में नाचे कुंजन से
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विनय दरसन पियारी जु को
हिय आस लगावे श्यामा जु को
करि कृपा बरसे रस रसिली जु को
अटारी टहल हरषन हित पियारी जु को
दरसन सुमिरन अतिरस पियारी जु को
युगन की तृषा मिटावे "तृषित" नाम श्री जु को
सत्यजीत "तृषित"
मेरी लाडिली जु बडी सलोनी - प्यारी
मेरी श्यामा जु बडी माधुरी - न्यारी
रसीली-रंगीली मधु-मंद मुस्काती
हरिप्रिया - हर्षिणी दृगकोर बरसाती
सहचरियों संग लाडिली लाड लडाती
नंदनन्दन सु प्रेम-महारास रचाती
अपनी विनय चितवन से जग को सजाती
तृषित पापिन पर झरझर करुणा गिराती
मधुर-कुमल छवि-मन से मोहन मोहती
लाड-प्रेम-रस-करुणा महाभाव से अंक में उठाती
-- सत्यजीत "तृषित" --
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रसिली प्रियाजु अंग - रंग राची सखी री |
लालसा लीला रोद - मोद मचावे सखी री ||
माधुरी प्रेम-श्रृंगार हिय - भाव करी सखी री |
झपक - पलक लपक-सेवा खडी सखी री ||
>< सत्यजीत तृषित ><
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श्याम मयी मोरी अंखियाँ
अब छविन करोडन में
वा सांची ना तलाशी जावे
वां सु कहियो सखिन
राखे नव छाप मुख अरबिन्द
अधर निचे हनु ते कछु
काजल बिंदु त्रिकोण धरयो करें
तू कहे खड्यो कदम्ब पकड्यो
मोकी अँखियन सु देख री
कदम्ब नाही नजर आवे री
कानुडो ही लागे डाल पात री
एक सु लाड करियो
लख-करोडन होई ग्यो
या सु लडाऊं लाड
तो का मोहे औऊर बावरी करे री ...
"सत्यजीत तृषित"
09829616230
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संग पिया अंग पूरी भई मैं तो
लगत हिय से खिल रही मैं तो
हलचल भीतर की जीय मैं तो
मकरंद कंज पंकज छुवत मैं तो
पलक गिरावत नैनन तर रही मैं तो
नीलाम्बर उजरी सी खोवत रही मैं तो
कछु पि पुलके कछु पुलक रही मैं तो
सत्यजीत "तृषित"
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हित हिय वल्लभ रसिका प्राणाधार
मंजरी हुई बुहार रही निकुंज द्वार
चित्र विचित्र विपिन नव नित देखत श्रृंगार
किंचित् तनिक मन लालजु क्षणिक निहार
तुम सजते हो तो बस फिर और क्या रह जाता है ... बस युं देख देख कर ही हाय !! ...
बस आँखों सामने बने रहोगें ना लाल जु !! तृषित की तृषा वहीं ठोर चाहती है
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धरम धरत करत-करत करम हारी
जोग भोग को पथ सदा रह्यो भारी
नाना विचार विचारे पायो ना तनिक बनवारी
सुजोग हुयो जा प्रेम सु प्रेम महिमा अति न्यारी
सत्यजीत "तृषित"
बस ! अब मोहन रंग में रंग जाऊं
धुन जो छेडी वहीं खो जाऊं
होते-होते उनमें ही हो जाऊं
बंशी की लहर संग सांस हो जाऊं
घुलते-घुलते एक ही हो जाऊं
कोटि कोटि प्रणाम सखी जू👣🌹🙇🙇
ReplyDeleteश्री राधे श्री हरिदास🙇🙇🙇