काहे क्षमा करे हो सकल अपराध मोरे
गहवर के वानर संग लटकाय दो मोहे
या बनाय दो शाप देत शिला ही
छुटत न छुटत काम कामना ही
बैठ जाओ मो पर
के धरो नित आवत ही लात चार
प्रेम से ना मानूं तो सहज करो दुत्कार
पर तन से ना निकालो मोहे
मन से ना बिसारो मोहे
लाड से ना राखो मोहे
दुत्कार से ही छुओ मोहे
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