रसिकनी सलोनी प्रिया
मंद मंद मुसुकाती प्रिया
प्रेम कल्लोनि बहाती प्रफुल्लित जग में
बृजराज साँवरे संग कुमुदित वन में
श्यामाश्याम दरश प्यासी अंखियाँ
श्याम की सताती कटारी अंखियाँ
तिरक तिरछ निरुपम अंखियाँ
करत टौना होवत गौणा हा श्यामा य री बेरन अँखियाँ
रहत मगन इह लोकन में सदा अखियाँ
हाय री कानन में कानुडा संग कबहूं उलझी अंखियाँ
देखत देखत जाँ छब ने खोउं री निज अँखिया
युगल प्रेम रस का बही री कोई रोकत लो मोरी अखियाँ
यें तेरे ईश्क़ का जोर तेरी गलियों में खेंचता है
मेरा जोर पलकों पर नहीं कद़म कौन चलता है
मेरे हमद़म जितनी शिक़ायत जहाँ को मुझसे रही
कहीं ज्यादा हर सांस में ईनायतों की बगिया रही
यें तेरी मुहब्बत है कि कल भी था और आज भी
तेरे बिन इक पल कहाँ गुज़ारुं याद न रहा आज भी
गर्दिशें ज़हन्नुम्म में रहे शौक़ से हम ज़रुर मेरे यारों
पर क़सम से उन चोटों में बडी यादें अटकी है यारों
कोई था हसीन् आफ़ताब संग सफर में तब यारों
दर्द जब गुजरता करीब से वो और करीब रहा तब यारों
हैरां मैं उन रातों में भी रहा और आज भी हूँ यारों
क्यूं करता है वो क़ातिले मुहब्बत हर इक बुंद से मेरे यारों
सहमती होगी डरती होगी दुनिया दर्द से
मुझे तो कोहिनुर ही मिला गहरी चोट से
मरना जिसे कहती रही दुनिया
सच अब वहीं ख्वाबे ज़िन्दग़ी हो चली है
दर्द से ग़र यार ए समन्दर साहिल में सिमट जायें
तब दुआ करुगाँ कल लहेरें और गहरी छाती उधेड जायें
मौत से तो तब ही गुजर गये हम
जब हमद़म संग रहे पर बेहोश थे हम
क्या खुब है तेरी कुदरत
तू है हक़ीक़त पर फसाना समझती है दुनिया
मैं हूँ फसाना पर हक़ीक़त समझती है दुनिया
तस्वीर मेरी होनी थी
आवाज़ यें तेरी होनी थी
इक रोज तुझे तस्वीर से आना है
और डुब कर मुझे तुझमें तस्वीर हो जाना है
ईश्क़ में चूर लाशे नहीं होती
मर कर बरसों में सजी सांसे न होती
मौत वो दरवाजा है यारों
जो मेरे यार में मुझे ले जायेगा
पिया संग चली अब मैं सखी
मोहे भावे न बचपन की गली
पिया संग ...
ज़िंदा ही वही है जिसे ईश्क़ है
ज़रा गौर से देखो यहाँ लाशों के मेले है
ईश्क़ में चूर कोई हसीन् पागल फिरता है
मर्ज और दवा दोनों की रक़म वो ही लेता है
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