Skip to main content

निरत बहे रस धारा

निरत बहे रस धारा
चित् लागे रसिलि पद प्यारा
मूँद-मूँद पावत मणियां
होवत रहत भवन उजियारा

भाव ना जानू कछु
भजन ना करु कछु
पद रज धरण को
बावरी वन वन भटकुं
और कछु आस ना
बस पगली बनाय दे ।
रोम रोम नाचे धुन वो सुनाय दे
महलन में तेरो
महलन, मैं का चाहूंगी
पग तेरे कंकर ना लागे
बुहारन ही बनाय दे ।।।
साहिब है जग को राजभोग तू ही पाय ले
थाल तेरो चाट लू कीड़ो बनाय दे ।

कूचाल कुकर्मी कुरूप को ना संग कर
देखत मोहे कोई कुंजन में छिपाय दे
याद न होवे तो धर ले चित् वाही पल
भाव न होवे सुख जावे कुटिल तन
तृषित नाम जो दियो है
प्यासो रहूँ आजीवन
अंग लगे संग चले
हिय सु हिय मिले
नीर-नीर तृषा तब भी रहे
सत्यजीत तृषित

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...