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हाय सखी वल्लभ

कैसे कहूं सखी ...
मेरो मन बसत राधावल्लभ लाल है
हाय ! देखन से ही सबहूं खो जाय है
नैनन में डुबन लागुं निकलत ना जाय है
बेरी शरमाय परदो गिराय जिवत मरत भी न जाय है
पूनी संभलू फिर आय फिर भीतर ही धंस जाय है
हाय पग पखारूं तनिक पग सरकाय है
कैसे पकडूं नागिन सो बल खाय है मर जाऊं जा दिन तनिक बुलावो कहाय दिजो
जैसे आये पिया कानन में कहाय दिजो
जीवन छुडायो है पिया मरनो भी भुलायेगो
बिन लपटाये मोहे कहां वल्लभ मुस्कुआवेगो

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