*आज कुञ्जन माँहिं होरी*
यूँ तो श्यामाश्याम का प्रेम निकुञ्ज सदा ही प्रेम रँग से पूरित रहता है, परन्तु आज तो कुछ विशेष ही रँग हुलास हो रहा है। युगल प्रेम रँग भीनी सखियाँ आज उन्मादित हो रहीं हैं, आह्लादित हो रही हैं, अपने प्राणप्यारे युगल वर को रंगने को उन्मादित हो रही हैं। युगल के ही प्रेम रँग को भर भर युगल पर उडेल रहीं हैं, युगल में प्रेम हुलास देख हुलसित हुई जा रही हैं। इस प्रेम रस की तरँगे प्रत्येक सखी, सहचरी,मञ्जरी, किंकरी को ऐसे रस से सराबोर कर रहा है कि वह अपने युगल को लाड़ लड़ाती हुई पुनःपुनः नाच रही हैं, गा रही हैं, झूम रही हैं। अहा!!प्राण प्यारे श्रीयुगलवर , जहाँ गौरांगी श्रीप्रिया श्यामल प्रियतम के रँग में रँगी हुई है तथा श्यामल प्रियतम गौरांगी प्रियाजु के उज्ज्वल रँग से उज्ज्वल हो हुलस रहे हैं, उमग रहे हैं, आह्लादित हो रहे हैं। सबके मुख पर एक ही गीत
आज कुज्जन माहीँ होरी.....
जिस प्रकार सभी रँगों के मिल्वे से श्वेत गौर आभा प्रसारित होती है , उसी प्रकार सभी सखियाँ श्रीप्रिया से प्राप्त प्रेम रँग को श्रीगौरांगी पर उड़ेल उड़ेल और अधिक उज्ज्वल कर रही है। सभी रँगों को अपने में सम्पूर्ण समा लेने पर कृष्ण अर्थात श्याम वर्ण प्राप्त होता है,श्रीकृष्ण सभी रँगों से पूरित गौरांगी को श्यामल रँग में भिगोये जा रहे हैं।सभी सखियाँ युगल के इस प्रेम में डूब डूब कर गौर श्याम रँगों का वर्धन कर रही हैं , उनको रँग रँग स्वयं इस प्रेम रँग से आनन्दित होकर अपने प्रियाप्रियतम के आनन्द का वर्धन कर रही हैं। सबके हृदय इस प्रेम रँग से सराबोर हो चुके हैं, कौन कितना भीगा, कितना रंगा किसी को कोई सुधि ही नहीं है। सबके हृदय वीना पर एक ही संगीत गुंजित हो रहा है
आज कुञ्जन माँहिं होरी......
आज कुञ्जन माँहिं होरी
रँग भर भर सखियाँ लाई, रँगी रँगीली जोरी
हिय आनंद सौं उमगावे ,उर भरे न प्रीति थोरी
पुनि पुनि हुलसें पुनि पुनि उमगें नवल किशोर किशोरी
चहुँ दिशि अति आनंद व्यापै निरख निरख प्रिया भोरी
एकै नाद हिय वीना गूँजे आई आज कुज्जन माँहिं होरी
आज कुञ्जन माँहिं होरी......
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