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बसंत-रंगहुलास 3 , संगिनी जू

"बसंत-रंगहुलास"

सरस सघन रतिरंगकेलि...भाव-3

अहा...पियप्यारी की अद्भुत सिंगार छवि को निरख निरख यमुना तट पर नव बसंत तमाल खिल उठे हैं...मयूर...पिक...कोयल...शुभा संग प्यारी जू की रूपमाधुरी का पान करते प्रियतम को श्रमित व्याकुल देख बसंत राग गुनगुना रहे हैं और सहचरियाँ प्रियतम की मनमोहनी रसपिपासित झाँकी पर वारि बलिहारि उन्हें नयनाभिराम नयनसुखकरनी अनंत सेवाओं से सुख प्रदान कर रहीं हैं...
प्यारी जू के मुखकंवल पर प्रियतम रसछवि को निरख श्रमजलकन ढुरक आते हैं...एक भोरि सखी सिंगार के दौरान प्यारी जू की दशा देख आरसी ले आती है और उनके मुखकंवल का दरस करवाने हेतु समक्ष खड़ी होती है पर प्यारी जू को इस आरसी में अपना नहीं...अपितु प्रियतम श्यामसुंदर जू का श्रमित मुखकंवल दृष्टायमान होता है...रसवर्धन हेतु एक दूसरी सखी ताम्बूल रस से प्यारी जू के नम अधरों का सिंगार करने लगती है जिससे प्यारी जू सिहर कर आरसी में से प्रियमुख निरखती हैं और उधर प्रियतम प्यारी जू के अधरों पर ताम्बूल गुलाब रस का मर्दन होते देख अचेत होने को ही कि सखी उन्हें अपना करस्पर्श देकर संभाल लेती है जिससे उनको आभास होता है कि ये अधररस मर्दन प्रियतम के अधरों का ही रसपान है...प्रिया जू के सरस लालसुर्ख अधरों पर जैसे प्यारे के अधरों से पीक की कीच मची हो ऐसा चांचल्य छलक पड़ता है और प्यारी जू सकुचा लजा कर नयन झुका लेतीं हैं...
सखी प्यारी जू के ललाट पर चुड़ामणि से प्रकाशित हो रहे चंदन तिलक के बीचोबीच लाल बेंदी लगाती है तो प्रियतम का हियकंवल चमक उठता है जैसे प्यारी जू ने सुहाग रूप प्रियतम को अपने नयनों के मध्य सुसज्जित किया है...
प्यारी जू की आँखों में काजल आँचती सखी के कर काँप रहे हैं क्यों कि इन नयनों में प्यारी जू की श्यामलता और प्रियतम की रसझाँकि इतनी गहरी व स्पष्ट हैं कि अंजन आंजना सखी के लिए मुश्किल हो रहा है...तब प्रियतम प्यारी के रूपमाधुर्य को उनकी रतनारी अखियों में उतरते देखना चाहते हैं यह जान सखी अति सुकोमलता से प्यारे के सुखहेतु प्रियानयनों में काजल लगाती है...अहा...
प्यारी जू प्रतिसिंगार अतिशय सुंदर सुंदर सुंदरतम बसंतरस सी सजती जा रहीं हैं और पिय बसंत में खिली रस कुमोदिनी सम बसंतरस मकरंद को अंक लगाने हेतु आकुल व्याकुल...
"प्यारी तेरौ वदन चंद देखें मेरे हृदै सरोवर तें कमोदिनी फूली।
मन के मनोरथ तरंग अपार सुन्दर्तया तहाँ गति भूली।।
तेरौ कोप ग्राह ग्रसें लियें जात छुड़ायौ न छूटत रह्यौ बुधि बल झूली।
श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा चरन बंसी सौं गहि काढ़ि रहे लटपटाइ गहि भुजमूली।।"
इधर प्यारे जू का नीलवर्ण चंद्रकान्तमणि सी सुसज्जित सुशोभित श्यामा जू के रूपलावण्य पर कुमुदिनी सा खिल रहा है तो उधर प्यारी जु प्रियतम के मयंक नयनों के प्रेमपाश में फंसे मनोहर चित्त को वश कर रंगहुल्लिसत व पुलकित हो रहीं हैं...भ्रमर जैसे कमलदल के गुच्छों पर मंडराता अनंत पुष्पराशियों की महक लेता है पर रसपान केवल एक ही पुष्प से कर तृप्त होता है...वैसे ही प्राणप्रियतम अनंत सौंदर्यता की राशि अनंत सखी सहचरियों से घिरे अनंत सिंगारों का दरस कर रहे हैं...पर उनका हियरसप्रसून केवल प्राणप्रियतमा रसकुमुदिनी की ही दृष्टि पिंजरे का पंछी बना हुआ है जो नयनों से ही नयनाभिराम रसमाधुरी की सम्पूर्ण कनकलता का माधुर्य पान करता मकरंदरूपी रोमप्यालों में मधु का मधु सेवन स्पर्श करने को आतुर हो रहा है...
प्राणप्यारी जू के एक एक हार सिंगार पर प्रियतम का चंचल मन कोटि कोटि वारने लेता हुआ उनके सुकुमल चरणारविंदों पर सजे लालित्य पर कुमुद बन अर्पित हो रहा हैं और नयनसुख पाकर प्यारी के मधुप चंद्रशोभित नख अनवट पर अपने प्राण न्यौछावर कर लोटना चाह रहा है कि तभी प्यारी जु के मधुर भृकुटि विलास से किंचित नयनों में निरख उनके रसीले हाव भाव पर थम सा जाता है...
अंत में सखियाँ प्यारी जू को मुकुटसंग सुंदर सेहरा सजा देतीं हैं जिससे प्रियतम जू को तनिक प्यारी जू का मुखदर्शन होना रुक जाता है तो वे प्यारी जू के मुख पर सेहरे से आ गिरीं कोमल कलियों के सौभाग्य पर बलिहारी जाते हैं...गौरांगी के रूप पर जैसे उनके ही रूप का श्वेत जाल सा बिछ गया हो और सफेद कलियों के अंत में एक एक लाल पुष्प पियहिय की ही महकी सी लटकन है...जिसे देखते ही प्रियतम प्यारी के अधर रसरंग में भीगने के लिए लालायित हो उठते हैं कि तभी उनके पीछे से सखियाँ आकर प्रियतम के मस्तक पर सेहरा बाँध देतीं हैं जिससे प्यारी जू जो सेहरे की लड़ियों में से प्रियतम का श्रृंगार निहार रहीं हैं रसमुदित हुईं छटपटा उठतीं हैं क्यों कि अब उन्हें भी प्रियमुखकंवल का दरस नहीं हो पा रहा...
सखियाँ पास ही विवाह वेदी पर प्यारे प्यारी जू को बिठातीं हैं और सगरी प्रेम रस में भीनी प्रियालाल जू का बसंत व्याहुला मंगलगीतों की रसीली धुनों संग सम्मपन्न कर तृप्ति पातीं हैं...अहा...
चिरजीवौ लाल लाड़ली...चिरजीवै युगल रचना जोरि...अहा...
क्रमशः

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