*आजु कुंजन में होरि*-रंगहुलास
सखी री...देख कुंजन की सोभा...रसरंग हुलास में भीग रह्यौ...चंदन अबीर गुलाल...री निरख कस्तूरी अंगराग घुह्लयौ...चहुं ओर होरि की होर...अहा...
निरख सखी...जे रंग भीने महक रहै जुगल सौं नेह जोर...इक इक रंग रस में भींज होय गयो सुघर सुलोल...
प्यारी पहिरे नील सारि अंग अनंग झाँकत किसोर...चोवे चंदन चोवे नख सिख चोवे रसकंवल भीगे सुंदर सुडोल...तनसुखसारि लाल अंगिया रिसै भरि भरि रस की नाहिं ठौर...चूनरी श्वेत रंग अनेक...श्यामल श्यामहिं अंग अंग की भोर...मौरसिरि बुलाक टपकै...टपकै कानन कुंडल सौं कपोल...गलहार टूटे...चटकै कंकन...कलाई पकरि अंक धरि चित्तचोर...वेणी भीगी कांधे सौं लपकी...लपक परि भुजंग गठजोर...पीताम्बर घिरा...नीलाम्बर सरका...पियप्यारि सजी रंग घनघोर...
अब ना तेरी...ना री मेरी...सघन कुंजन में...लाल सेज पुहुप बरषा चहुं ओर...धरा लाल अंबर लाल...सजिहौ प्यारे कर सौं प्रतिरोम...आह...आह...भीतर चाह...छोरो मोहे...ना रंगो रंगरेज और...प्रीत तोरि गहरी...रसरंग भरी...सरक गई मेरी अंगिया चूनरी...सटक कर तुम हुए अंगरंग अघोर...लाल गुलाब पंखुरी बिछी...सज रही तन तें लोम विलोम...अंग सुअंग उभरन...रस छलकन...पिय श्रृंगारै...लालन चख ना अघावै...रसरंग मिलै घुलै निसिभोर...खेलत सघन कुंजन में होरि...मचि परि रस रंगीली होर...
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रीहरिदास !!
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