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बसंत-हुलास 2 , संगिनी जू

"बसंत-हुलास"

सरस सघन रतिरंगकेलि...भाव-2

"रहौ रहौ बिहारी जू मेरी आँखिन में बूका मेलत कित अंतर होत मुख अवलोकन कौ।
और भाँवती तिहारी मिल्यौ चाहत मिस कैं पैयाँ लागौं पन पन कौ।।
गावत खेलत जो सुख उपजत सुंदर तौ कोटि वर है तन कौ।
श्रीहरिदास के स्वामी कौ मिलत खेलत कौ सुख कहाँ पाइयत ऐसौ सुख मन कौ।।"
अहा...प्यारी...पियहियवासिनी...सुवदनी...प्रियतमसंगिनी...ओ रसीली...रंगीली जू...
चंचला शुभा बसंतागमन पर प्यारी कौ सिंगार निरख बौराए गई है और प्रियतमप्यारी के मधुर मधुर नाम पुकार पुकार कर मधुकर को रिझा रही है...प्रियतम रसमग्न हुए जा रहे हैं और गहराते गहराते इतने गहराए कि इधर सहचरि रूप प्यारी को सिंगार धरा रहे और उधर उनके अंग सुअंगों पर सुवदनी प्रिया की निरखन से बसंत खिल रहा...रोम रोम रसक्षुधित सा निहार भी रहा और रस की फुलवारी सा खिल भी रहा...
प्रियतम हृदय ही फूलनि के सिंगार में फूलनि हो महक चहक रहा और इसकी महक से प्यारी जू भी जैसे प्रियस्पर्शसुखानुभूति से रसीली हुईं जा रहीं...उत्कर्ष...उन्माद सा छाने लगा है सिंगार कुंज की लता पताओं पर क्षुब्ध वन्य पक्षियों पर...ऐसा उन्माद कि बासंतिक पुष्पों की सुसज्जित मालाओं हारावलियों का स्वतः रसनिर्झन और उन पर विराजित शुक सारि शुभा कीर कपोत अह्लाद से भरे बासंतिक राग गाने लगे...मयूर मयूरी हंस हंसिनी नाच उठे...
प्राकृतिक बसंत तो चहुँ दिसि पसर रहा सखी...पर जे प्रेम नगरी कौ बसंत न्यारोई री...अहा...
"सहज कुसम समूह नखसिख सुंदरी सखुदाइ।
लाल अल आसक्त सौरभ मिलि बिलसि बिलसाइ।।
अंगराग पराग रंगे अंग पिय पीयूषै प्याइ।
मत्त घूमत नैंन जुगवर सैंन मैंन नचाइ।।
सहज सरस बसतं रतिपति लियैं ललचाइ।
देख यह सुख जियें हम सब सुख दियें समुदाइ।।"
सखियाँ अब जुही चमेली कुमकुम अरगजा की महक से सने प्यारी के सुखानुरूप सुंदर आभूषण कंकन हार सिंगार ले आतीं हैं...प्यारी जु के प्रत्येक अंग पर अति कोमलता से एक एक आभूषण पहनाती सखियों का अवलोकन करते तृषित प्रिय के चकोरवत् रसनयन प्यारी जू की असीम सुंदरता का रसपान कर रहे हैं...प्यारी को जैसे प्रियतम आभूषण पहना रहे वैसे ही प्रियतम को भावावेश में आभूषणों का स्पर्श अपने नीलवदन पर हो रहा...स्वर्णिम मणिरत्नयुक्त बासंतिक चित्तवन में उज्ज्वल रससिंगार में सुसज्जित श्यामा जु और इनके सिंगार के एकाएक सेवक व पुजारी स्वयं श्यामसुंदर...अहा...
पुलक पुलक निहारते सिहरते द्वै चकोरनेत्र और सम्पूर्ण सिंगार की राशि प्यारी श्यामा जू पुलकित सकुचित सी नयन झुकाए सिमटती हुई रस में भीग रहीं...
रतिरस सघन निकुंज केलि जिसमें प्रिया प्रियतम जू बसंत रंग में खिल भी रहे और झर भी...
वस्त्राभूषण व कस्तूरी चंदन मर्दन उपरांत अब अति सरस बसंती नवखिलिन से संवरे महके पुष्पों की हारावलियाँ प्यारी जू के सिंगार के लिए उतावली हुईं जा रहीं हैं...जे पुहुप सखी जो प्यारी जू की वेणी...कंठ...कुचमंडल...उदर...नाभि...व नितम्बों से गिरते झरते चरणों तक लपक कर सज रहे ना...जे प्रियतम की रसफुलवारी की रोमावली हैं री जो पुष्प बन प्यारी के रसअंगों का सिंगार कर रही...अहा...
जैसे चंद्रिकामणि स्वतः चंद्र को निरछ रस झराने लगती ऐसे प्यारी जू के अंगों पर सुसज्जित ये पुष्प प्यारे के हिय के बसंत को निरख रसनिर्झन से प्यारी को भिगो रहे...हियकंवल से चरणों तक लटकती लपकती रसमालाएँ प्रियतम हिय का रसबहाव ही हों जैसे...ऐसे बहुरंगों में प्यारी जू को रंग रहे...प्रियतम पुष्प रूप प्यारी के हिय से लिपट चरणों में लोट रहे...एक एक रसाश्रित पुष्प जैसे डाली पर सुसज्जित हो जैसे...
प्रियतम धीर अधीर प्यारी को निहार रहे...पियहिय की वीणा के तार व्याकुल मधुर स्वतः बज रहे और प्यारी जू की अति आकर्षणकारी रूपमाधुरी के स्नेहपाश में बंधे बंधे नव बसंत सम खिल रहे प्रकृति को आगोश में भर सुसज्जित विराजित कर सजाने महकाने हेतु...अहा...और प्यारी जू प्रेम परवश हुईं इन सुंदरवर नवबसंत की गोद में रसीली पुष्पबेल सी सजने को रसातुर हुईं इनके अनंत अनंत असीम रसरंगों में अनुकूला हुईं रसफुलवारी सम रसमगी भर रहीं...गोरी भोरी प्यारी सुकोमला सुकुमारी कृष्णसुखार्थव्याकुला सज संवर रहीं प्रियतमसुखरूप और प्रियतम प्यारी की तत्सुखरूप सुंदर सजल नेहभरी कृपाकटाक्षिणी मुस्कन अधरथिरकन पर...भृकुटि विलासन पर बलिहार जाते ना फूले समाते...चिर जीवौ पिय...पियहियवासिनी...चिर जीवौ...खूब सजो...खूब सँवरो...खूब सुख नेहवर्षण कर हर्षो...नित्यनूतन...नित्यनव हुलसन...नित्यनव सिहरन...नव पुलकन...नव रसनृत्य...नवनव रागरागिनीन...नित्यनव नवरस...नवरसझरन...नवनंदसुवन...नवनंदसुकुंवरि...नितनव सिंगार...नितनव रसढुरकन...नवनव रसों की हिलमिल...नित्यनव रँगों में परस्पर रंगो...नित्यनव जीवन...नित्यनव सेज पर...नित्यनव उल्लास...नित्यनव गहन स्पंदन...नित्यनव बासंतिक कमलदल की खिलन...नित्यनव क्षुधित की नित्यनव रसतृषा...नित्यनव बसंत नित्यनव नवमिलन...अहा
क्रमशः

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