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बैठ तरू लाल सखी पै , आँचल जु

एक पतली,लम्बी व कच्ची पगडंडी के इस छौर पर दो,तीन सखिया कुछ ढूंढती सी खडी है।ये इधर उधर देख रही की तभी पास के पेड पर बैठे लालजु ने इन सबके उपर गुलाल उडेल दिया।
ओह!सब की सब रंग गयी।किंतु लालजु फस गए,सबने इनके पाँव पकड लिए,खींचने लगी...उतार कर ही छोडी।
सब इनको पकड श्रीजु सम्मुख लायी,तब सखिया स्वामिनी जु का श्रृंगार कर रही थी।सब लालजु को घेर सारी बात बता रही,और लालजु के लिए सजा की दरकार करने लगी।
लाडली जु मंद मुस्कान संग कही,सखियो इन्होने तुमको रंगा तब तुम सब भी इनको रंग दो।
तब सब बोली,आप हमारी स्वामिनी,सो इनको सजा देने का अधिकार आपको ही।
आप इनको रंगकर हमारे संग हुए हुल्लड का प्रतिकार किजिए।
तब स्वामिनीजु "बहुत अच्छा" कह चली।
एक सखी थाल मे गुलाल ले आई,पर लाडलीजु जरा सा चुटकी मे गुलाल ले लगाने चली,तभी समीप ही खडी ललिता जु बोली- अरे!मै दीखाती हू,कैसे रंग लगाते,और यह कहकर सारा गुलाल भरा थाल लालजु पर उडेल दिया।
उधर से पास खडी सखी से गुलाल का थाल छीनकर लालजु ने लाडलीजु पर उडा दिया।
अब तो होड लग गयी,पूरा कुंज गुलाल से रंग गया।सब गुलाल उडा रही।
और सबके बीच मे लालजु मौका पाकर लाडलीजु को अंक मे भर खडे है...हर ओर गुलाल ही गुलाल....

बैठ तरू लाल सखी पै गुलाल डारौ,मिली सब खैच लयौ उतारौ।
पकर सबै लाल लली सम्मुख लाई,बरजौरी सब कहही सुनाई।
लगाय रंग लली बरौबर कीजै,हुल्लड करी जौ बदलौ लीजै।
चुटकी भरि लली गुलाल लै चलिहै,ललिता सखी रंग थाल पलटिहै।
चहु दिशी तबहु री भयौ गुलाबी,प्यारी बीच पिय संगही छबी फाबी।

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