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र से रस 3 , संगिनी जु

!! वृंदावन !!

स्पष्ट झन्कार !
एक अद्भुत खिंचाव इस देह प्राण को झन्करित करता एक ब्रह्म स्थल गहन अनुभूति नाम में ही।अपनी ओर आकर्षित करता एक स्वप्न या एक दिव्य लीला स्थल।जड़वत् करता जगत की जड़वत् भवतरंगों को।एक प्रेम भूमि जहाँ गहनतम भाव लहरियाँ अंतरंग भिगोतीं सी।एक स्वर्ग धरा पर प्रिया प्रियतम प्रेम निकुंज अनवरत बहता जहाँ प्रेम रसरंग।दिशाएँ भीगीं तरू पल्लव रसस्कित धरा और अम्बर।
वृंदावन !!सात सुरों से लिए एक सुर से हर्षिणी देह हुई झन्कृत स्पंदित !
हे प्रिया हे प्रियतम !
तुम जो कह दो तो
चुन लूं "र"शब्द
बन स्वर वृंदावन
थिरक उठूं रूनझुन रूनझुन

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