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र से रस 7 , संगिनी जु

!! मयूर भ्रमर कीर मृगी सारि !!
वृंदावन के डाल डाल पात पात पर श्रीराधे राधे होय।हर वृक्ष हर लता पर मधुर प्रियाप्रियतम जु के रसप्रेम के गीत गाते गुनगुनाते व श्यामा श्यामसुंदर जु की ही धुन पर झूमते नाचते इठलाते वृंदावनिय मयूर मृग खग इत्यादि।युगल रूप में प्रतिपल युगल वंदना में निमग्न मधुर कलरव से वृंदा देवी के गहन आलिंगन में बद्ध होकर रहने वाले ये पक्षी प्रियालाल जु के दूत दूती रूप यहाँ वहाँ उड़ते रहते।एक श्यामा जु का गुणगान करती तो दूसरा श्यामसुंदर जु को लीलाधर कह समग्र विश्व प्रेमियों को दिव्यता की सुमधुरतम कोमल प्यारी गहन झाँकियों का रसमय वाणी से दार्शनिक गान सुनाता।श्यामा  जु की वेशभंगिमाओं से अंकुरित कमलदल के दिव्य सरोज मकरंद से झड़ते निरंतर मधु का पान करते श्यामसुंदर स्वरूप भ्रमर भोर रात्री मंडराते मधुर गुंजार करते युगल ध्वनि से नव नव प्रेम रस गान कर डूबे रहते।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
इन सुंदर सलोने दिव्य रस में डूबे
दिव्य अमरत्व प्राप्त जीवों का
तुम जो कह दो तो
"र" सुर हो जाऊँ
नित्य प्रति नित नव कलरव कर
दिव्य प्रेम लीलाएँ सुमधुर मैं गाऊँ  !!

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