!! मधुर ब्यार रसस्कित जल तरंग !!
वृंदावन धाम की रसस्कित ब्यार एक दिव्य झंकार लिए सदा प्रियाप्रियतम जु से एकरस होकर अनुकूल बहती है।मधुर ब्यार तृण पत्रों का रस श्रृंगार करती एक से दूसरे और फिर सम्पूर्ण धाम में रस संचार करती है।इस ब्यार के चलने में अद्भुत नृत्य की सुररूप झंकार सदा रहती है जिससे मयूर पिक कपोत इत्यादि सदा दिव्य इत्र के अनुभव से महके रहते हैं।ऐसी ही दिव्य झंकार सदा भरी रहती है यमुना जु की भावलहरियों में जो श्यामा श्यामसुंदर जु के प्रेम रस की महक पवन में पाते ही विपरीत दिशा में बह चलती है।यमुना जु में बहता जल तरंगायित होता हुआ श्री युगल के प्रेम रस स्वरूप ही कभी मंद तो कभी नृतिका रूप तो कभी गहरे उछल्लन लिए बहती रहती है।यमुना जु प्रियाप्रियतम जु के चरणों में पुष्प अर्पित करती है और उनके अति सुकोमलतम चरणों को छूने के लिए कभी उफान तरंगों का रूप भी धर लेती है।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे इन दिव्य सुगंधित ब्यार
व भाव इत्र से रसपूर्ण जलतरंगों का
अगर तुम जो कह दो तो
झंकरित रसरूप "र"सुर हो जाऊँ
और श्वास बन
जल और वायू तत्व होकर
धाम में अनवरत बहूं !!
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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