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र से रस , संगिनी जु

"झन्कार"

सा-सांवरे
'रे'-रे
गा-गाऊँ गीत
मा-मृदंग मधुर
पा-पाजेब नूपुर
धा-धा धा धींम ताम
नी-नील पीत रस रंग नहाऊँ

हे हरि
सात सुरों की सरगम से
एक सुर मैं चुन लूं
कहो जो तुम तो प्यारे
मधुर एहसास बन लूं
प्रेम रस से रंगी हर्षिणी
रसवर्षिणी की एक कला बन लूं
डूब जाऊँ सात सुरों में
अंनत रंग रूपों में ढल लूं
तुम जो कहो तो प्यारे
एक सुर मैं चुन लूं

सात स्वरों की तरंगों से
एक मधुरिम ध्वनि चुन
गाऊँ गुनगुनाऊँ थिरकूँ
ताल से ताल मिलाती
प्रिय श्यामा जु को रिझाऊँ
अगर तुम जो कह दो तो सांवरे
सुर प्रेम के बन इतराऊँ

हे श्यामसुंदर
प्रिय मनमोहन
तान बांसुरी की बन
राधे राधे गाऊँ मैं
एक सुर जो चुन लूं तो
प्रति ध्वनि बन नाद अजब सुनाऊं
तुम जो कह दो तो प्यारे
चित्त से स्वर बन जाऊँ

हे प्यारी श्यामा जु
प्राणों से प्यारे प्रियतम के
अधर सुधा रस पान से
बांसुरी की धुन से
कृष्ण कृष्ण स्पंदन उपजाऊं
तुम जो कह दो तो प्यारी
सात सुरों की रागिणी
एक सुर चुराऊं

हे राधे हे राधे
एक मंजीर मधुरिम
झन्कार तुम्हारी करधनी पायल की
बन राग अनुराग के गाऊँ
तुम सज संवर बन दुल्हन बनो
रूनझुन रूनझुन की पुकार बन
श्याम जु की हृदय वीणा को छेड़ आऊँ
तुम जो कह दो तो प्यारी
एक मधुर स्वर सरगम बन जाऊँ

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