!! तृण लता !!
वृंदावन के तृणमूल लता पता स्नेहालिंगित गहनतम रसरूप माधुर्य के साक्षी गाते झिलमिलाते।सूर्य के प्रकाश को लजाते।सन सन छन छन की मधुरिम ध्वनि से नाम राधे राधे गाते।हिल मिल कर एक ही साज़ में कृष्ण कृष्ण बुलाते।पवन की सर्र सर्र सुरताल से विहरते श्यामा श्यामसुंदर जु के कदमताल संग ताल मिलाते।तृण पात वृक्ष वल्लरी सब झुक झुक कर श्यामा श्यामसुंदर जु के स्पर्श से महकी वृंदावन धरा को छूकर फिर उठ जाते।डाल डाल पात पात पर राधे नाम की महावर को सजा कर नित्य नव नवीन राग गाते।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
इन रसस्कित रसपल्लवों की
तुम जो कह दो तो
"र" नाम की झन्कार बन
इतराऊँ डोलूँ
पवन संग मिल
हरि हरी हरियाली छटा बिखराऊं
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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