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र से रस 6 , संगिनी जु

!! तृण लता !!
वृंदावन के तृणमूल लता पता स्नेहालिंगित गहनतम रसरूप माधुर्य के साक्षी गाते झिलमिलाते।सूर्य के प्रकाश को लजाते।सन सन छन छन की मधुरिम ध्वनि से नाम राधे राधे गाते।हिल मिल कर एक ही साज़ में कृष्ण कृष्ण बुलाते।पवन की सर्र सर्र सुरताल से विहरते श्यामा श्यामसुंदर जु के कदमताल संग ताल मिलाते।तृण पात वृक्ष वल्लरी सब झुक झुक कर श्यामा श्यामसुंदर जु के स्पर्श से महकी वृंदावन धरा को छूकर फिर उठ जाते।डाल डाल पात पात पर राधे नाम की महावर को सजा कर नित्य नव नवीन राग गाते।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
इन रसस्कित रसपल्लवों की
तुम जो कह दो तो
"र" नाम की झन्कार बन
इतराऊँ डोलूँ
पवन संग मिल
हरि हरी हरियाली छटा बिखराऊं

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