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र से रस 13 , संगिनी जु

!! बरसाना गह्वरवन मोरकुटी गौवर्धन !!

श्रीयुगल जु की श्री वृंदावन की पवित्र भूमि पर रस विहार हेतु ऐसे दिव्य लीला स्थल हैं जहाँ नित्य प्रति श्यामा श्यामसुंदर जु गलबहियाँ डाले नित्य निवास करते हैं।उनकी परम सुखमयी सहचरी सखियाँ उनकी दिव्य रस लीलाओं का पान करतीं उनके लिए दिव्य रसस्थलों पर कुंज निकुंजों का निर्माण करतीं रहतीं हैं।यमुना जु की भावतरंगों में नौका विहार से लेकर गौवर्धन जु की तलहटी में सुंदर खेल उत्सव में लीलारत संलग्न रहते युगल सदैव सखियों संग विचरण करते रहते हैं।मोरकुटी में नृत्य व संगीत प्रतियोगिताओं में डूबते उतरते युगल रस भाव सदा निकुंज में रसलीलाओं को जीवंत रखते हैं।ब्रज भूमि से बरसाना धाम तक सदैव प्रियालाल जु के आवागमन से चलायमान रस का आदान प्रदान होता रहता है।श्यामा श्यामसुंदर जु की सुख की हितु सखियाँ पुष्पाविंत सेज श्य्याओं का निर्माण करतीं गह्वर वन में विचरती रहती हैं।सघन अति सघन कुंजों में भी श्यामा श्यामसुंदर जु की प्रीतिरस की मधुर झन्कारें सदा गूँज बनकर सुनाई पड़ती हैं।जहाँ रसिकवर रस में नहाए डूबते अश्रु बहाते धरा धाम का सींचन अपनी प्रियालाल जु के प्रति प्रीत में रसलिप्त होते हैं।ऐसे कुंज निकुजों को सदा दण्डवत प्रणाम जहाँ रसरूप झन्कारें रसराज के हृदय पर रसरानी बरसाने वाली बरसाती रहतीं हैं।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे इन गहन कुंज निकुंजों में
रूनझुन रूनझुन गिरती
नृत्यांगना धरा पर पड़ती
मधुर झन्कार कर दो
तुम जो कह दो तो
धरा की "र" शब्द ध्वनि बन
रस बरसाने वारी की
अकिंचन मधुर पुकार करूँ  !!

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