!! प्रेमी रसिकवर !!
श्यामा श्यामसुंदर जु के अद्भुत प्रेम रस रास के साक्षी यह रसिक रास अति रसीले जो सदैव डूबे रहते हैं श्रीयुगल जु की लीला स्फूर्तियों में।क्षण क्षण छके हुए से ऐसे जैसे उन्हें बाह्य जगत का कोई होश ही नहीं।वातावरण व जागतिक परिस्थितियों से ऊपर उठ चुके यह रसिकवर जिनका सच्चा संसार प्रियालाल जु का दिव्य धाम ही है।देह से यहाँ पर भावदेह को जीते सदा श्यामा श्यामसुंदर जु व उनकी सखियों के अप्राकृत प्रेम राज्य में।जगत की सुद्धि भुला कर वहीं विचरते प्रियाप्रियतम जु की लीला स्मृतियों में और दर्शन कराते झरोखे स्वरूप उन दिव्य लीलाओं का।अद्भुत रस पिपासु यह रसिकवर प्रियालाल जु के अलौकिक गहन प्रेमी।दिव्य दर्शक और आईना इस संसार में उस अलौकिक साम्राज्य के।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
उन रसिक रस रसीले महानुभावों की
चरण रज पा जाऊँ
मस्तक धरूँ और दिव्य लीलाओं का
तुम जो कह दो तो
सदा गुणगान करूँ !!
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
Comments
Post a Comment