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र से रस 4 , संगिनी जु

!! प्रेमी रसिकवर !!
श्यामा श्यामसुंदर जु के अद्भुत प्रेम रस रास के साक्षी यह रसिक रास अति रसीले जो सदैव डूबे रहते हैं श्रीयुगल जु की लीला स्फूर्तियों में।क्षण क्षण छके हुए से ऐसे जैसे उन्हें बाह्य जगत का कोई होश ही नहीं।वातावरण व जागतिक परिस्थितियों से ऊपर उठ चुके यह रसिकवर जिनका सच्चा संसार प्रियालाल जु का दिव्य धाम ही है।देह से यहाँ पर भावदेह को जीते सदा श्यामा श्यामसुंदर जु व उनकी सखियों के अप्राकृत प्रेम राज्य में।जगत की सुद्धि भुला कर वहीं विचरते प्रियाप्रियतम जु की लीला स्मृतियों में और दर्शन कराते झरोखे स्वरूप उन दिव्य लीलाओं का।अद्भुत रस पिपासु यह रसिकवर प्रियालाल जु के अलौकिक गहन प्रेमी।दिव्य दर्शक और आईना इस संसार में उस अलौकिक साम्राज्य के।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
उन रसिक रस रसीले महानुभावों की
चरण रज पा जाऊँ
मस्तक धरूँ और दिव्य लीलाओं का
तुम जो कह दो तो
सदा गुणगान करूँ  !!

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