!! मंजीर मृदंग सितार नूपुर बाँसुरी !!
वृंदावन की पावन धरा धाम में प्रवेश करते ही सुमधुर संगीत धमनियों की सी झन्कार कर्णपुटों से होते हुए हृदय द्वार को मधुरता से खटखटाने लगतीं हैं।सखियों व श्रीयुगल के पद थाप से उठती रज को तरंगायित करती यह संगीत ध्वनियाँ वृंदादेवी द्वारा कीर मयूर पपीहा कोकिल इत्यादि वन्य जीवों के कलरव की संयोजक हैं।जहाँ जहाँ प्रियालाल जु रस आसक्त हुए सखियों संग विहार विलास करते हैं वहाँ वहाँ यह संगीत धरा से स्वतः उठता हुआ आसमान में भी उड़ते पक्षियों भ्रमरों को संगीत लहरियों में बाँध रखता है।अप्राकृत संगीत में रमता सखियों का मंजीर मृदंग वादन और उस पर भी लाल जु की बाँसुरी की आकर्षित करने वाली राधा नाम पुकार अद्भुत झन्कार यमुना जल की कल कल रसस्कित पवन की सर्र् सर्र् धरा से उठती धप धप ध्वनि जैसे सखियों संग खेलतीं श्यामा जु यहाँ वहाँ और उन्हें सदा ढूँढते विचरते वंशी बजाते श्यामसुंदर।छुपे भी नहीं पर तलाशते सदा एक दूसरे को परस्पर एक दूसरे में डूबे हुए।इस सबसे परे श्यामा जु की इठलाती अटकेलियाँ करती मधुर हंसी की झन्कारें जो नूपुर मंजीर को संयोजित करतीं और प्रियतम श्यामसुंदर की वंशी का भी चित्त चुरा लेती।सच !!अद्भुत गहन झन्कार !!
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे इन आनन काननों में
सदैव गूँजती
यह मधुर किलकारी सी
प्यारी श्यामा जु की हंसी की
प्रिय श्याम जु की वंशी की
रस शब्द की ध्वनि कर दो
तुम जो कह दो तो
सरगम से "र" धुन चुन लूं
सात सुरों की सरगम से
एक लय बन कण कण बह लूं !!
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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