सियाराम विवाहोत्सव की जयजय
करत पणिग्रहण रघुकुल मणि।
श्याम राम सिया पीत बरन कौ,दुई शोभा न जाय बरणी।
तात विदेह कर करहु धरिहै,पढत मंत्र जलहु छडिहै।
कुल लाज मूरत जानकी प्यारी,रघुबर प्यारौ मरजादा शीश धरिहै।
बलिहार भये जनकपुर नर नारी,मिल आरती करत माई न्यारी।
मोतिन मणिक बलि कर लुटावै,छबि सरबस चित्त हरण हारी।
लोग लुगाई गावत मंगल ,हियहि अति प्यारी शरमावे।
ब्याह निरख युगल छबी प्यारी,प्यारी बार बार बलि जावै।
कैसेहु सिया बरमाला डारै।
नीलमणि कछु ऊँचौ सिय सौ,कैसेहु प्यारी उचक माल डारै।
बड्यौ संकट हिय जानकी हौय,मुख सौ बैन कहत न जारै।
उत्त हिय ऐसेहु राम कौ हौहि,मरजादा बश झुकन न चाहरै।
समुझ दोउन हिय लछमण बाता,करत उपाय भाई चरण छुवा रै।
ज्योहि उठावन अनुज कौ झुकिहै,चटपटि सिय माल राम कौ डारै।
जय जय जय धुनि करत सबहि,प्यारी हिय मोद अतिहि बढा रै।
कोहबर राम सिय आये री।
बिधि मंगल सब पूरण किन्ही,सखी मिल आसन एक बैठाये री।
परिहास हास सब राम सौ करिहै,लजावै लई सखी दुई चुटकी री।
कोऊ कहे दास राम सिय कौ,कोऊ चुप छबी को निहारे री।
मौन भये मुस्कायै सहज हौ,लाज प्यारी सिय गढी जावै री।
मोहै भी लै चलिहौ जनकपुर,दरस प्यारी छबी कौ पावै री।
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