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मोरकुटी युगलरस लीला-7 , संगिनी जु

मोरकुटी युगलरस लीला-7

जय जय श्यामाश्याम  !!
ललिता सखी जु की वीणा पर मधुर प्रेमरस तान सुन श्यामा श्यामसुंदर जु के हृदय के भाव उनके दृगों से बहने लगते हैं।
श्यामा जु जैसे ही श्यामसुंदर जु को देखतीं हैं उनकी पलकें नम व देह काँप उठती है और ऐसा ही गहन कम्पन श्यामसुंदर जु के अंगों में होता है।श्यामा जु कब से मयूर को अपलक निहारते निहारते श्यामसुंदर जु में ही उस मयूर की छवि को देखने लगतीं हैं।

    श्यामसुंदर जु ने मयूर रंग ही वस्त्र पहने हुए थे और श्यामा जु के नेत्रकमलों में श्यामसुंदर जु मयूर रूप ही उतरे।श्यामा जु की आँखों में स्वयं की छवि को श्यामसुंदर जु श्यामा जु के मन अनूरूप मयूर ही हो गए।यह देख श्यामा जु स्वयं को रोक नहीं पातीं और अद्भुत भाव उच्छल्लन से मयूरी बन नृत्य क्रीड़ा करने लगतीं हैं।

   श्यामसुंदर जु भी उनके पीछे पीछे वंशी पर मधुर तान छेड़ते चल देते हैं।श्रीयुगल प्राकृतिक मयूर मयूरी नृत्य क्रीड़ा को विस्मृत कर अपने ही अप्राकृत नित्य नव लीलाराज्य में स्वयं अद्भुत मयूर मयूरी नृत्य क्रीड़ा करने लगते हैं।

    अप्राकृत भावराज्य में श्यामा श्यामसुंदर जु ने जो मयूर रंग वस्त्र पहने थे वे सब अब उनकी देह पर मयूर मयूरी वेश बन सुंदर सुकोमल रंग बिरंगे नील व पीतवर्ण मोरपंख बन लहराने लगे हैं।श्यामा जु सुनहरी व श्यामसुंदर जु नीलमयूर बन एक अति कोमल कमल पुष्प पर विराजमान हैं और नृत्य क्रीड़ा कर रहे हैं।

    इस अद्भुत सुंदर कमल पुष्प की पंखुड़ियाँ श्यामा जु की कायव्युहरूपा सब सखियाँ ही हैं जो ललिता सखी जु की वीणा से तान मिलाती मधुर वाद्य बजाने लगतीं हैं।नृत्य क्रीड़ा में श्यामा श्यामसुंदर जु के अद्भुत अभिन्न भावों में संगीत रूप नवरंग भरतीं ये निकुंज कणिकाएं श्यामा जु के नृत्य व श्यामसुंदर जु के वंशी वादन में डूबती उनके भावों को अपने भावों में पिरोने लगी हैं।

     श्यामा जु की सुंदर नृत्य भावभंगिमाओं में डूबे श्यामसुंदर जु वंशी बजाना छोड़ श्यामा जु संग नृत्य करने लगते हैं।कमल पुष्प की कोमल मखमली पराग भूमि पर श्यामा श्यामसुंदर जु के अति सुकोमल चरण कमलों की पद छाप से श्रीनिकुंज की धरा व आसमान जैसे गलबहियाँ डाले कम्पायमान हो रहे हैं।सूर्य देव भी श्यामल घन को समक्ष कर स्वयं उनके पीछे चलते नतमस्तक विचर रहे हैं।मयूर मयूरी युगल व धराधाम का कण कण जो कुछ क्षण पहले ललिता जु की वीणा नाद से थिरक उठा था अब सब ठहर इन श्रीयुगल को निहारते जड़ होने लगा है।

      कई कई नव खिलित पुष्प स्वतः ही युगल के चरणों में पराग कण बन बिछ रहे हैं और उनके चरणों की छुअन से मधु बन अर्पित हो रहे हैं।अनवरत कई घड़ियों तक यह अद्भुत नृत्य क्रीड़ा यूं ही चलती है।

     श्यामा जु के कमलनयनों से गिरते अश्रुकण श्यामसुंदर जु के चरणों को छू कर अमूल्य मोती बने थिरक कर धरा की कोख में नवअंकुर बन समाने लगे हैं नव प्रेम लीला रस हेतु नव कमल खिलाने को।इन अश्रुओं की छुअन से श्यामसुंदर जु की देह सम्पादित होती है और वे नव नव सुंदर नृत्य कलाओं का प्रदर्शन करते श्यामा जु के नृत्य से ताल मिलाते गहराते उबरते डूबते जा रहे हैं।

    निकुंज ब्यार इन पुष्पों पर पड़ते श्यामा श्यामसुंदर जु के चरणों की थाप व अश्रु से सींचित पराग कणों की महक को उड़ा अन्यत्र ब्रह्मांड में ले चलती है जिससे समग्र जड़ चेतन होने लगते हैं और श्यामा श्यामसुंदर जु की नृत्य क्रीड़ा के साक्षी बन सर्वत्र अणु बन विचरने लगे हैं।

    बलिहार  !!रसिक हृदय के अद्भुत भाव श्यामा श्यामसुंदर जु के कृपापात्र बने सुंदर नित्य नव क्रीड़ा में डूब रहे हैं।उनके हृदयह्तल पर युगल भावरूप बन नव नव प्रेम अंकुर खिलाते नव सजीव क्रीड़ाएं करते हैं और उन संग स्वयं भी बहते डूबते रस विस्तार व रसपान करते हैं।
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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