मोरकुटी युगलरस लीला-5
जय जय श्यामाश्याम !!
श्यामा श्यामसुंदर जु श्रीनिकुंज में विराजे मयूर मयूरी के नृत्य को निहार रहे हैं।बहुत समय बीत चुका।श्यामा जु अपलक उन्हें देख रहीं हैं और श्यामसुंदर जु प्रिया जु के हृदय में उठ रही भावतरंगों को।
आखिर श्रीप्रिया जु किस भाव में डूबीं जा रहीं हैं यही सोच प्रियतम अकुलाए से हैं।सखियाँ ये सब दृश्य देख रहीं हैं कि उन्हें प्यारे जु का बार बार प्रिया जु को देखना और प्रिया जु का प्रियतम की तरफ कोई भावचित्रण ना देना विचलित करता है।प्रिया जु के मौन को तोड़ लीला को आगे बढ़ाए जाना और श्यामसुंदर जु की इच्छापूर्ति के लिए कुछ गतिविधि करना सखियों के लिए अब अनिवार्य है।
समय व स्थल की स्थिति को देख पूर्वराग हेतु श्री ललिता सखी जु पास ही एक कदम के नीचे बैठ मधुर वीणा राग छेड़ देतीं हैं जिससे पूरे निकुंज में संगीत की मंत्रमुग्ध कर देने वाली ध्वनि से अद्भुत कर्णरस का प्रादुर्भाव होता है और इस अति सुंदर वीणा नाद से मोरकुटी का काम्यवन मयूर युगल सा ही तान पर थिरक उठता है।मधुर ध्वनि के संग यह नृत्य और भी सुंदर हो उठता है।
श्रीललिता सखी जु के वीणा का अनहद् नाद जैसे समग्र निकुंज का भावचित्रण ही बदल देता है।धरा अम्बर झुक झुक कर ललिता सखी जु के चातुर्य पर बधाई दे रहे हों जैसे।यमुना जु का शीतल जल तो उफान ले ले श्रीललिते जु के चरणस्पर्श को ललायित हो उठा।
वन वन बेल पत्र जड़ दिशाओं ने भी नृत्य पर तालबद्ध हो नाचना झूमना आरम्भ कर दिया है।सखियों ने इस नाद के अनुरूप मंद मधुर झांझ मृदंग बजाना आरंभ किया और सब कीर कोकिल भी मधुर मुखध्वनि करने लगे।आसमान में छाए श्यामल घन की किवड़िया से सूर्य भी इस सुंदर मधुर उपवन में आई बहार को ताकने लगा।ऋतुराग की ध्वनि सुन सर्वभाव समर्पण हो चुका प्रियालाल जु के चरणों में सखी ऋतु का।
अर्धखिलित कलियाँ खिल उठीं।सब की सब श्यामा श्यामसुंदर जु के चरणों में समर्पित होने के लिए यमुना जु में गिर गिर अपना स्नान कर नव नव भावों से मंद ब्यार से उड़ कर यमुने के साथ साथ धरा को सुंदर श्रृंगार कराने लगीं हैं।जैसे सितारे ज़मीं पर उतर आए हैं ऐसे आभूषण बने ये पुष्प धरा को जगा मगा रहे हैं।
सूर्य की घनमिलित शीतल किरणों से कमल पुष्प मनमीत श्यामाश्याम जु के चरणों की रज पराग कण पाने के लिए न्यौच्छावर होने लगे हैं।सूर्य ने अपनी तपिश को मंद कर कमल पुष्पों को स्नेह से सहला मात्र दिया है कि अब मुझसे मिलन उपरांत तुम प्रियालाल जु के चरणों तले मखमली कालीन से बिछ जाने के लिए अकुलाए हुए व्याकुलता वश उन्हें भाव समर्पण कर दो।यह सुन जैसे मधुर संगीत संग कमल पुष्पों ने कीच का त्याग कर लहलहाना प्रारम्भ कर दिया और जैसे सहमति भरते सभी पुष्प सूर्य से मुख फेर श्यामाश्याम जु को निहारने लगे।उनकी बरसों की तमन्ना आज पूर्ण अह्लाद से भर भर कर कीच को छोड़ निश्चल सुगंवित धरा को छूने लगी।
अद्भुत भावदृश्य !!कण कण प्रियाप्रियतम जु के प्रेम में सुंदर भाव उच्छिलत करता श्रृंगार रूप चमक उठा है।
बलिहार !! ललिता सखी जु के इस सुंदर भाव पर सगरी प्रकृति ही लहलहा उठी है।रसिक हृदय में भावों का जो अब तक जमघट लगा था वह तरंगायित होकर उफान लेने लगा है।मथने लगा है स्वयं को कि अब कैसे कब और कहाँ किस भाव उच्छल्लन से श्री प्रियालाल जु का कैसा भावावेश नया रूप ले लेगा और फिर मधुर मिलन भाव से प्रेमी की श्यामा श्यामसुंदर जु को एकरूप प्रेम में डूबी छवि को हृदयांकित करने का सौभाग्य मिले।सच !! ये मंथन गहराने लगे और और और !!
जय जय युगल !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन !!
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