प्यारी जू के नैन
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श्यामा श्यामसुन्दर का मुख कमल अपने करों से स्पर्श करती हैं । आहा ! प्रियतम आपकी ये मुख छवि दिन प्रतिदिन नई नई लगती है। जैसे आपको निहारती ही रहूँ। मेरा हृदय इस छवि को निहार निहार तृप्त ही नहीं हो रहा है। श्यामा अपने नैन मूँद लेती है। अपने प्रियतम की इस छवि को अपने नैनों में सदैव भरे रखना चाहती है।
कान्हा अब प्रियतमा के मुख कमल को निहारने लगते। प्यारी जू नैन खोलो न देखो मैं तो तुम्हारे सामने प्रत्यक्ष हूँ । ये छवि इतनी मधुर है कि यदि मैंने नैन खोल लिए तो विलुप्त नहीं हो जाये। यही तो मेरे प्रियतम हैँ। प्यारी जू ! नैन खोलिए देखिये मैं इधर हूँ । नहीं नहीं तुम मुझे भर्मित नहीं करो। देखो मेरे श्यामसुन्दर तो मेरे संग हैँ। अपने नैनों से मैं हर पल उन्हें निहारती रहती हूँ। मेरा उनके संग और उनका मेरे संग एसप्रेम है हमारा वियोग सम्भव ही नहीं है। कहती हुई श्यामा जू बन्द नैनों से उसी छवि को निहारती रहती है। कान्हा प्यारी जू को स्पर्श करते हैँ प्यारी जू कम्पकपा जाती हैँ और कान्हा उन्हें अपने आलिंगन में भर लेते हैँ।
श्यामा निहारत मुख प्यारे को कर सों कियो स्पर्स ।
नवल नवल मुख लागे तिहारो अद्भुत लगे तेरो दरस ।।
बहुरि देर निहार लई तबहुँ प्यारी मूँदें नैन ।
प्रियतम कहें कहो प्यारी जू कछु मीठे बैन ।।
नैनन खोलो और निहारो याही प्रेम को नवल रस रूप ।
मूँदें नैन प्यारी कहे या नैनन बसिहो तेरो रूप अनूप ।।
क्या जनिहो तुम प्रियतम हो या मेरो हिय को भरम ।
नैनन रखूँ याहि छवि निहारूँ क्षण क्षण होय प्रेम को मर्म ।।
इस अद्भुत प्रेम की जय हो
जय जय श्री राधे
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