मोरकुटी युगल रसलीला-11
जय जय श्यामाश्याम !!
पूर्वार्द्ध
शरद ऋतु में याद सजन की इतनी बढ़ती जाती है
ऊपर से शीतल हवा झौंकों संग विरह की अग्न जलाती है
याद करके पूर्व स्मृतियाँ मैं खुद को बहलाती हूँ
हो परवश उनकी याद में आँखें भर भर जाती हूँ
लेकिन शायद पिया तक यह हवा पहुँच नहीं पाती
मैं विरहन हिमकण बन बन बह जाती हूँ
ऋतु कोई भी पर नित्य लीला धाम श्री निकुंज की मोरकुटी व रसिकों की भजन स्थली पर श्यामा श्यामसुंदर जु पुरूष प्रकृति स्वरूप नित्य नवसींचन हेतु नित्य नव रसक्रीड़ाओं में सदा संलग्न रहते हैं।
अत्यधिक अद्भुत नृत्य कला दर्शाते श्यामा श्यामसुंदर जु की छवि निराली है।गहनतम भावों को छूती ये नृत्य क्रीड़ा नव नव मुद्राओं में गहन रस में परिवर्तित हो रही है।यहाँ प्रियाप्रियतम जु की यह रसक्रीड़ा और वहाँ भ्रमरों की गुंजार सुन तो जैसे प्रकृति ने श्वास लेना छोड़ रसरूप नवपंकज खिलाना आरंभ कर दिया है।रस ही जैसे रस को पी कर रस ही बरसा रहा हो चहुं ओर।
यूँ तो बिन सूर्य सरोज खिलना प्रकृति के विपरीत है पर यहाँ अप्राकृत भावराज्य में सूर्य तो क्या बाँस की रसीली वंशी और ऋतुराज ने भी आत्मसमर्पण कर दिया है।सम्पूर्ण प्राकृतिक कलाकृतियों ने भावराज्य में श्यामा श्यामसुंदर जु की नृत्य कलाक्रीड़ाओं में विसर्जन कर दिया है।
मयूर बने श्यामसुंदर जु ने अपने सम्पूर्ण पंख बिखरा दिए हैं और मयूरी श्यामा जु को अपने आगोश में ले लिया है।पूर्ण रूपेण श्री श्यामसुंदर किशोरी राधे जु को आवरण औढ़ा कर जैसे प्रेमालिंगन दे रहे हैं।श्यामा जु की सखियाँ जो मोरपंख बन लहरा रहीं हैं उनमें से कुछ कमल पुष्प पर बिछे मखमली पराग पर आ गिरी हैं।ये सखियाँ एक तो श्यामा श्यामसुंदर जु को निहार अति प्रसन्न हो रहीं हैं और दूसरे परागकणों को अपनी शीतल छुअन से नवसींचन हेतु स्पर्श कर रहीं हैं।
श्यामा श्यामसुंदर जु की निराली नृत्य क्रीड़ा पर मोरपंख बनी सखियों ने भी आत्मसमर्पण कर उनके चरणों में गिर श्यामा श्यामसुंदर जु की चरण सेवा पा ली है।ये सखियाँ प्रियाप्रियतम जु को परस्पर सुख देते देख अत्यंत सुख का अनूभव कर रहीं हैं जैसे प्रियतम श्यामसुंदर जु ने उनकी प्रियतमा श्यामा जु को ही नहीं अपितु सखियों को भी प्रेमागोश में ले उन्हें संग एकरूप रसरूप कर दिया है।
श्यामाश्याम दोनों एक दूसरे को निहार रहे हैं।उन्हें अपने आसपास मोरपंख व कमल पंखुड़ियाँ बनी अपनी सखियों का भी बोध नहीं।दोनों एक दूसरे से सट कर नृत्य मुद्रा में स्थिर हो चुके हैं जिससे प्रकृति वातावरण सब तत्सुख हेतु स्वयं को संयोजित कर रहे हैं।
आसमान के बादलों ने घनश्याम रूप ले लिया है और घनश्याम ही हो गए हैं।तरड़ तरड़ाती दामिनी ने श्यामा जु का स्वरूप धारण कर लिया है।घण की तेज कूजती आवाजें श्यामा जु के नूपुर की ध्वनि बन चुके हैं और बादलों ने घूमड़ घूमड़ कर बहकना छोड़ श्यामा श्यामसुंदर जु के कजरारे थिरकते नयनों ने ले लिया है।मंद मंद बहती पवन श्यामा श्यामसुंदर जु की श्वासें बन आई है और उनके नेत्रों से बहता प्रेम रस मधुर मधुर बरसात की बूँदें।
सम्पूर्ण प्रकृति ही स्वयं श्यामा श्यामसुंदर स्वरूप नव यौवन में रंग कर इंद्रधनुषी वनफूल माला पहने सज गई है।
बलिहार !!अद्भुत रस श्यामा श्यामसुंदर जु की कृपादृष्टि से धरा नहला गई है और रसिक हृदय इस बरसात में भीगा हुआ गोते लगाता कभी मंद पवन सा बहाव तो कभी रस भवंडर सा उफान।श्यामसुंदर जु ने श्यामल सुंदर रजनी में जैसे गौरवर्ण सुनहरी श्यामा जु तारों पर रस बरसाती बूँदों से मोरपंखरूप इंद्रधनुषी सखियों को छतरी औढ़ा दी है।अति सुंदर मतवाली रूपरस छटा बिखेरती ये निकुंज रसलीला।
क्रमशः
जय जय युगल !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन !!
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