राधेमयी सखी
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एक सखी कुमकुम केसर लेकर प्यारी जू के श्रृंगार को जाती है। आज श्यामा जू को अपने हाथों से प्रथम बार इस प्रकार का श्रृंगार करेगी यही सोच पुनः पुनः आनन्दित हो रही है। मार्ग में उसे श्यामसुन्दर उसे रोक लेते हैं और पूछते हैँ बाँवरी तू किधर जा रही है।
श्यामा जू के श्रृंगार की बात सुन श्यामसुन्दर उसे मार्ग में ही रोक लेते हैँ। ये सिंगार सामग्री मुझे दे दे सखी आज मैं प्यारी जू का श्रृंगार करूँ। श्यामसुन्दर आज ये सेवा तो मुझे प्रथम बार मिली है मुझे सेवा करने दो न। श्यामसुन्दर कहते हैँ देख मुझे ये सेवा दे दे नहीं तो मैं तेरा श्रृंगार करूँ वैसे ही जाकर तुम प्यारी जू का कर देना। सखी इस बात को स्वीकार कर लेती है। सखी के भीतर जो प्यारी के श्रृंगार की भावना है वही तो श्यामसुन्दर हैं। श्यामसुन्दर तूलिका ले सखी के मुख पर श्रृंगार करने लगते पर उन्हें तो राधा नाम के सिवा कुछ सूझ ही नहीं रहा। सखी के मस्तक पर राधा लिख देते हैँ। सखी को प्रियतम के स्पर्श और राधा नाम लिखवाने से अद्भुत आनन्द होता है। इधर श्यामसुन्दर को राधा नाम लिखने से अद्भुत आनन्द हो रहा। न तो सखी श्यामसुन्दर को राधा नाम लिखने से रोक पा रही और न ही श्यामसुन्दर राधा नाम छोड़ रहे हैं।
सच ही तो है कोटिन कोटि ब्रह्मण्ड की स्वामिनी प्रेम स्वरूपिणी श्री राधा के नाम में ही ऐसी दिव्यता है जिसका आनन्द तो उनके नाम में मग्न कोई विरला ही जान सकता है। श्यामसुन्दर धीरे धीरे सखी के सारे मुख फिर धीरे धीरे सभी अंगों पर राधा राधा चित्रित कर देते हैँ। सखी भी राधा नाम से उन्मादिनी हुई जाती है । अब सखी श्यामसुन्दर के संग प्यारी जू के पहुच जाती है। सभी सखियाँ और प्यारी जू इस बाँवरी सखी का श्रृंगार देख हँसने लगती हैँ कान्हा ने सम्पूर्ण रोम रोम पर राधे राधे राधे ..... ही लिख दिया है और कहते हैँ प्यारी जू ये सखी तुम्हारी सेवा में आई परन्तु मेरे बहुत प्रयत्न करने पर भी मुझे आपकी सेवा न दे रही थी । जैसे मैंने इसका श्रृंगार किया अभी ये तुम्हारा करेगी। प्यारी जू तो सदैव अनुभव करती हैँ कि प्रियतम उनके रोम रोम में समाये हुए हैँ। दोनों एक दूसरे को देख परस्पर मुस्कुराते हैँ और आलिंगनबद्ध जो जाते हैँ। सभी सखियाँ युगल के आनन्द से आनन्दित हो रहीं।
इस अद्भुत युगल प्रेम की जय हो
जय जय श्री राधे
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