क्या तुम सुनते हो खामोशियाँ मेरी
लफ़्ज़ों में कहने की मेरी औक़ात न रही
दर्द और बढ़ने दो तो मज़ा हो इश्क़ का
मुस्कुराहटों में मज़ा ए इश्क़ अब नहीं
क्या तुम सुनते हो .....
तेरे कदमों के नीचे खुद को बिछा देती मैं
तेरे आने की मुझे खबर ही ना लगी
क्या तुम सुनते हो .....
ये बेखुदी भी तेरे इश्क़ का इनाम है
मैं तुझको याद करूँ ये मुमकिन कभी नहीं
क्या तुम सुनते हो .......
खुश हैँ तेरे बगैर हम हमें इश्क़ ना हुआ
जो इश्क़ होता तो इक साँस आती कभी नहीं
क्या तुम सुनते हो खामोशियाँ मेरी
लफ़्ज़ों में कहने की मेरी औक़ात न रही
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