ए री सखी...निरख तो जे कमल दल न्यारै ही खिलैं हैं जमुना पुलिन ते...अद्भुत गुलाबी गुलाबी...जामुनी मोगरा जुही से महके...सतरंगी मनरंगी पराग बूँदन सौं सजे धजे...स्वर्णिम ओस कणों से दमके ...
एक टीस...एक पुकार...एक प्यास सी उठ रही हिय से...कैसी...यह अतृप्त तृषा... हा हा... ... ...अभिन्न आलिंगित सदा पर तब भी पुकारती यह तृषा... जाने कौन भीतर गहरतम समाया जिसकी यह प्यास या मेरी... अज्ञात पर ...
श्रीअंग परिमल-भाग 2 "श्री जी से अनन्य होई वांके हृदय की सौरभ अनुभूत कर री...प्रियतम की मूल सौरभ जे ही...प्रियतम प्राणन की सौरभ...प्राण वायु उनकी श्रीजी अंग सौरभ"... ... ...अहा !! सखी री...जे महक ...
"राधै तन फूल्यौ मदन बाग" सुरभ परिमल श्रीप्रियाजु श्रीवेणु...सखी...श्रीवेणु को सुनती हो ना...आह... ... ... हाँ...खूब भावै है ना प्रति रव तोहे...चोखो लगै है...खूब आनंद रस मिसरी सम घोलै है तोंमे...अ...